तुम अपने बूढ़े पिता से
मधुर मुस्कान की उम्मीद न रखो
उससे अधिक प्यार की उम्मीद भी न रखो
देखो कितना धीरे- धीरे टहलता है
धरती कितनी छोटी हो गई है ?
भोजन की तरफ भी
हाथ धीरे- धीरे बढ़ाता है
हाथ छोटे हो गए हैं
जीवन छोटा हो गया है
उसे तो जी भर जी लेने दो
चाहे दवा के सहारे या प्यार के सहारे
अंतिम मौका है जो हाथ से छूट रहा है
अब वह दोबारा नहीं आएगा
तुम्हें जन्म देने के लिए !
(जमशेदपुर, झारखंड निवासी अग्रवाल का कविताओं पर १० पुस्तकें तथा अन्य विषयों पर ८ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ।)
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