• २०८२ कार्तिक २५, मंगलवार

कविता बोलती है

पुष्प लता 'पुष्प'

पुष्प लता 'पुष्प'

मेरी कलम से निकली
मेरे शब्दों की धारा
बहती रहेगी
मेरे भावों का
जल लेकर…

मेरे एहसासों को
सीचती हुई
हर ऋतुओं के
‘पुष्प’ खिलाते…

और जा गिरेगी
किसी के
उस पावन
अंतः मन के
समंदर में
जो कविता के
जल में नहा कर
उसके भाव के
स्पर्श को महसूस करे
की कविता बोलती है…
उसके हर शब्द में
छुपा होता है
जीवन का सार…


(लक्ष्मी बाई नगर, नई दिल्ली , भारत )
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