• २०८१ असोज २९ मङ्गलबार

दो कविताएं

पूनम हिम्मत अद्वितीय

पूनम हिम्मत अद्वितीय

उसकी मेरी हो गयी यादें

ज़रा सी देर में पल के भीगो गई यादें
मैं जागती रही अंधेरों में भी
न जाने किस बीच सो गई यादें ।

दिलो दिमाग़ में थी जिस जिस से नफ़रत
नफ़रत को धो गई यादें ।

कही शोर है तो कहीं असीम सूनापन,
ना जाने कब उमड़ कर आ गयी यादें
नहीं मिला जिसे चाहा
एक चाह मानकर
भले ना हुआ वो मेरा मगर
उसकी मेरी हो गयी यादें
वह जिसे भुलाना चाहती थी हमेशा के लिए
उसी की याद में पलकें भिगो गई यादें ।

मैं शून्य मात्र रह जाती हूं

ढूंटती नज़रे अकस्मात् टिक जाती हैं
उस चेहरे पर
सोचती हूं सब कह दूं जो बोझ है मन में
पर हृदय शब्द रहित हो जाता है
मैं शून्य मात्र रह जाती हूं

आनंद कुछ क्षण मात्र साथ का
वही वेदना बन जाता है
यस आनंद मुक्ता को पाने तक
पुनः उसी में हो जाने तक
मैं शून्य मात्र रह जाती हूं ।


(चौराहा, लखनऊ निवासी अद्वितीय संस्कृत भाषा की विद्वान हैं आौर हिन्दी की चर्चित लेखिका।)