• २०८१ पौष २९ सोमबार

एक राजा की पट-कथा

संजय सिंह

संजय सिंह

झूठा राजा
झूठी रानी
रूपनगर की यही कहानी
आँख की नदियार साँस का पानी
कौन कहे फिर वही कहानी…

वह भोर से पहले का समय रहा होगा । आसमान में लाली सी छिटक रही थी, तभी तेजी से आँधी और बारिश के आसार नजर आने लगे । धूल के बवण्डर चलने लगे और वृक्ष झूमने लगे । उस वीराने में दूर तक कहीं कोई घर भी नजर नहीं आ रहा था । घुड़सवार भागने लगा । उसे भागते देख कोई भी कह सकता था कि वह मुसीबतजदा है । आखिर दूर उसे घर जैसा कुछ दिखा, वह उधर ही मुड़ा । आँधी इतनी तेज थी कि वह गिरते- गिरते बचा ।पीठ पर हवा का बहुत दबाव महसूस हो रहा था, रकाबी से पैर खिंच रहे थे ।झपटते हुए घोडे को एक कोने में बाँधा और अन्दर घुसा ।
‘आइए महाशय !’ सराय के बूढ़े मालिक ने अपनी ऊँघ से चौंक कर कहा, ‘लगता है बाहर बहुत तेज बारिश हो रही है…!’
‘जी महाशय  !’
‘आप चाय लेंगे ?’
‘जरूर ।’
‘कहाँ जा रहे हैं  ?’
‘शहर ।’
‘इस समय ?’
‘बीबी बीमार है ।’ घुड़सवार ने कहा, ‘दवा की सख्त जरूरत हो गयी… निकलना पड़ा । उस समय मौसम ऐसा नहीं  था  ।’
‘ता…ते…ती कोई चाय दो महाशय को…!’ उसने आवाज लगायी, ‘आप बैठिए… पानी को तो छूटना ही है…।’
सराय का वातावरण बड़ा रहस्यमय लगा उसे । मेजों पर बेतरतीब चीजें बिखरी हुई थीं, जैसे रात में थकान के बाद लोग लुढ़क गए हों । भट्टी की आग बुझती हुई सुलग रह थी । लैम्प पर रौशनी की जगह धूएँ की लकीर उठ रही थी ।
‘यह सराय आने का समय नहीं होता  !’ मालिक ने उबासी लेकर कहा, ‘फिर ये तीनों स्त्रियाँ ता, ते और ती काम करने से ज्यादा भविष्य बताने के नाम पर ग्राहकों से रुपिए ऐंठ लेती हैं… आप हुशियार रहिएगा  ।  ये कहानियाँ गढ़ने में माहिर हैं… संसार की सभी झूठी-सच्ची कहानियों का जन्म इन्हीं तीनों की कोखों से हुआ है…!’
‘चाय महाशय  !’ ता ने कहा ।
‘मुझे हवा और बारिश के थमने का इन्तजार है ।’ आगंतुक ने ध्यान हटाकर कहा, ‘कितना अप्रत्यशित है यह सब ?’
‘क्यों  ??’ ता ने साभिप्राय पूछा ।
‘मैं अपनी बीबी की दवा के लिए जल्दी शहर पहुँच सकूँगा  ।’
वह बोला,  ‘मेरे पास समय नहीं है  । वह हद से ज्यादा बीमार है ।’
‘महाशय !’
‘जी  !’
‘मेरा मतलब है…जब तक आप चाय पी रहे हैं । अगर भविष्य जानने में आपकी रूचि हो तो, मै कुछ बताना चाहूँगी ।’ ता ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘यह जान कर आपको अविश्वास ही नहीं, आश्चर्य भी होगा कि अब आपकी भेंट अपनी बीबी से नहीं होगी ।’

‘क्या ?’ वह चौंका, ‘इस तरह की बेतुकी बातों से कोई हैरान हो सकता है ।’

उसने चौंक कर कहा ।
‘महाशय आप तो अपनी बीबी को पहचान भी लेंगे, पर आपकी बीबी और बच्चे तो बिल्कुल नहीं…।’ वह चेतावनी की हद तक गंभीर होकर बोली, ‘मगर ऐसा होगा…।’
‘आप पहेली बुझा रही हैं…।’
‘नहीं, मैं सच कह रही हूँ ?’ ता ने कहा, ‘किसी को गलत कहने का मेरा प्रयोजन क्या हो सकता है महाशय  ?’ वह मुस्कूरायी, ‘इस सराय में बहुत से लोग अपना भविष्य जानने के लिए भी आते हैं…।’
‘ता…!’ मालिक बिगड़ा, ‘तुमने शुरु कर दिया…।’
ता हट गयी । वह हैरत से ता को ताकता रह गया  ।
उसने चाय खत्म करने के बाद सराय के मालिक की ओर देखा, तो उसने कहा, ‘अगर पानी और हवा थम गए हों, तो आपको इन स्त्रियों की बातों पर बिल्कुल नहीं ध्यान देना चाहिए । आपके लिए आपका सफर सब कुछ है…आपको निकलना चाहिए ।’

०००
वह सराय से निकलने के बारे में सोच ही रहा था, तभी दूसरी स्त्री ते आ गयी ।  उसने कहा, ‘आप राजा बनेंगे । यह सौ फीसदी सच होगा ।’
उसे लगा कि वह पागल हो जाएगा । वह टिप टिप के बीच ही भागने पर आमदा हो आया, तभी तीसरी स्त्री ती आयी । उसने कहा, ‘महाशय आपका घोड़ा बहुत भाग्यशाली  है आपके लिए… इसका विशेष खयाल रखिएगा ।’
‘इसमें अनोखा क्या है ?’ आगंतुक ने कहा, ‘मैं अपनै घोड़े से बेहद प्यार करता हूँ । मगर आपकी बातों से लग रहा है कि मैं खुद के लिए अजनबी होता जा रहा हूँ…।’
‘..महाशय जिन लोगों को यह कहानी काल्पनिक और गढ़ी हुई लग रही है । उनसे भी गुजारिश होगी कि या तो कहानी में या फिर अपने जीवन में कहीं एक जगह वे अतिरंजना की गुंजाइश रहने दें, नहीं तो जिन्दगी बहुत सपाट और उदास हो जाएगी ।’ ती ने मानो किसी उदात्त भाव से भर कर कहा, ‘ईश्वर आपका भला करें ।’
‘थोड़ी देर के लिए यहाँ आकर कोई भी हतप्रभ हो जाएगा  । अगर यह भी इस सराय की खूबियों में है, तो यहाँ लौट कर कोई भी आना चाहेगा ।’ वह बड़बड़ाया, ‘पर मैं इन काल्पनिक भविष्यवाणियों से प्रभावित होने वाला आदमी नहीं हूँ । किसान हूँ  । अपने परिश्रम पर मेरा विश्वास है ।’
‘ती  !’ मालिक फिर बिगड़ा, ‘उस आदमी की बीबी बीमार है, और तुम लोगों ने उसे परेशान कर दिया । उसका समय मूल्यवान है… उसे जाने दो  ।’
‘बोशक,’ तीनों ने कहा, ‘हमने तो केवल भविष्य कहा है, कहानी तो आगे घटित होगी  ।’
‘तुम तीनों की भविष्यवाणियाँ कभी सही हुई हैं ?’ वह हँसा, ‘तुम लोगों ने मुसाफिरों को बेवकूफ बनाकर हमेशा अपना उल्लू सीधा किया है…।’
‘कतई नहीं  !’ तीनों ने प्रतिवाद किया ।

०००
उसने तीनों स्त्रियों खासकर सराय के मालिक का अभिवादन किया और फिर बैरंग घोड़ा पर चढ़ा  । उसे लगा कि सराय से जितनी जल्दी वह निकल ले, उतना भला । वह तेजी से शहर की ओर बढ़ने लगा । अभी उसके दिमाग में सराय की घटनाओं की बातों का असर खत्म भी नहीं हुआ था कि वह रुक गया ।
एक बुढि़या रास्ते में खड़ी थी और रुकने का इशारा कर रही थी । उसके साथ एक लावण्यमयी युवती भी थी, जिसे देख कर कहा जा सकता था कि वह मार्ग में चलते हुए पूरी थक गयी थी ।
‘क्या बात है माँ  ?’ उसने लगाम खींच कर कहा  ।
‘तुम शहर जा रहे हो न  ?’
‘हाँ  !’ वह बोली, ‘तुम्हारा भला हो ।  तुम मेरी बेटी को घोड़े पर चढ़ा कर शहर से पहले पीपल के अश्वत्थ वृक्ष को पास छोड़ देना, तबतक मैं पीछे से चलती-चलती आ जाऊँगी…।’
वह असमंजस और संकोच से घिर गया, ‘माँ  !  मैं बहुत संकट में हूँ, मेरी पत्नी बीमार है, मुझे जल्दी लौटना है… तुम्हारी बेटी को अकेले कहीं छोड़ दूँगा यह उचित नहीं होगा, मेरे पास अलग से रुकने का समय भी तो नहीं…।’
‘बेटा परोपकार का अपना धर्म होता है…।’ बुढि़या ने विवशता जतायी, ‘परिस्थिति से मैं भी संकट में हूँ ।’
‘माँ यह सयानी है, यह लोकाचार के विरुद्ध होगा  ।’ घुड़सवार ने कुछ सोच कर कहा,  ‘तुम होती तो अलग बात थी  ।’
‘बेटा तुम्हारा मन निर्मल है ।’
‘रहने दो माँ  !’ वह बोला, ‘तुम्हें इस दुर्गम मार्ग में ऐसा नहीं सोचना चाहिए । युवती को लेकर कोई भाग भी तो सकता है…।’
‘सो तुम ठीक कह रहे हो…।’ बुढि़या निराश होकर बोली, ‘तो मुझे ही ले चलो बेटा । मैं भी तो चल नहीं सकती ।’
‘क्या ?’  वह चौंका, देखा तो अचानक लड़की गायब हो चुकी थी ।
घुड़सवार के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था…अब वह क्या बोले  !
दादी की कहानी का जन्म इसी तरह कल्पना की रम्य भावभूमि पर होता था, इसलिए मन रमता था । आश्चर्य, कौतूहल, रहस्य-रोमांच से भरपूर । वह सुनने-सुनाने की चीज होती थी । स्मृति में आख्यान चलता रहता था । कई बार हम विरोध भी करते थे दादी ये कैसे हुआ ? लडकी गायब कैसे हो गयी वह कहती, ‘किस्सा-कहानी में तो होता है… फिर कहानी कैसे बनेगी  ?’
‘मतलब ?’
‘अब मतलब क्या कहें,  वह तो कहानी कहेगी ! पहले सुनो तो  !’
…हार कर घुड़सवार ने उसे घोड़े पर चढ़ा लिया । बुढि़या ने विस्मय में पड़े घुड़सवार से कहा, ‘मैं परीक्षा ले रही थी बेटा । तुम सफल हुए । तुम पर भविष्य भी अपना दाँव लगा सकता है ।’
घुड़सवार ने कहा, ‘आज का दिन सुबह से ही ऐसा रहा माँ… कुछ न कुछ हो रहा है मेरे साथ…वह भी उलटा-पुलटा…।’
‘भवितव्य पर किसका अख्तियार है बेटा !’ बुढि़याने दुहराया, ‘इस रास्ते में अश्वारोहियों ने बहुत से लोगों को लूटा है, पर सभी एक जैसे नहीं होते । मैंने नहीं समय ने तुम्हें परखा…। तुम्हारे साथ जो भी होगा अच्छा ही होगा  !’
दोपहर तक चलने के बाद अब शहर आने वाला था । अचानक बुढि़या से उसने पूछा, ‘तुम अब उतरना चाहोगी माँ  ? मुझे आगे जाना है…।’
‘हाँ ।’ उसने मुस्कूराकर कहा ।
उसने एक अश्वत्थ पेड़ के पास उसे उतार कर कहा,  ‘तुम कुछ देर आराम करने के बाद चली जाना माँ…। घोड़े पर भी तुम्हारी उम्र में लोग थक जाते हैं…।’
बुढि़या ने गठरी खोल कर एक सुंदर स्त्री की तस्वीर निकाली और उसे देते हुए कहा, ‘यह जादू की औरत है, जब तुम चाहोगे सच में बदल जाएगी । तुम्हारी मदद करेगी  । संकट में स्त्री का होना बहुत जरूरी होता है तातेती आना,  तो मिलना बेटा  ।’
‘ता ते ती ?’  वह अकचकाया,  ‘सुनो माँ मैं क्या करूँगा इस मूर्ति का… मेरा इन बातों में यकीन नहीं  !’
‘बेटा जीवन एक कहानी है,  कब क्या घटित हो कौन जानता है ? रख लो काम आएगी ।  इसके रहते तुम्हें कोई तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं सकता…।’ वह आश्वस्त होकर बोली,  ‘माँ की बात मानो  । आगे कुछ होने वाला है… तुम्हें इन्तजार भी नहीं करना पडेगा…।’
‘ठीक है  ।’ वह बोला, ‘ये दो रुपिए तुम भी रखो  । कुछ खा लेना…।’
‘बुढि़या आशीषते हुए आगे बढ़ गयी । यह हो क्या रहा है उसके साथ ?…ता…ते…ती ! दिमाग में फिर चखचख शुरु हो गया  ! वह मन ही मन व्यंग्य से हँसा भी इस मजाक पर । उसने सुन रखा था कि शहर के रास्ते में नकली फकीर और सौदागर मिलते हैं, जो मिट्टी-पत्थर भी भोले ग्रामीणों से सोना कह कर बेच लेते हैं । उसे कुछ भी समझ में नहीं आया । भाग्य उसके साथ अजीब खेल खेल रहा था । बुढि़या भी रहस्य का जाल बुन कर चली गयी, उसे तत्काल सोचने की भी फुर्सत नहीं थी  । वह शहर दाखिल हुआ ।  तस्वीर के बारे में अभी वह दवा की दुकान पर उतर कर सोचता ही कि हजारों लोगों की भीड़ के पीछे राजशाही सेना की टुकड़ी दौड़ती दिखी । गोली, बन्दूक, बारुद बल्मल बर्छी, तलवारें…वह भागा । सेना की टुकड़ी बहुत देर तक उसे खदेड़ती रही  । घोड़े ने सचमुच उसकी जान बचा ली थी !

०००
उसने घोड़े की पीठ पर हाथ फेरा । और भविष्य केबारे में सोचा । हे भवितव्य ! अब तुम्हीं राह दिखाओ ! बहुत से लोग जब तक भाग कर आए, वहाँ विद्रोहियों का शिविर सा बनता गया । उन्होंने उसे अपना नेता मान लिया था । यह लड़ाई लंबी चलती रही । आखिर एक युग के बाद उस राजा का राजपाट खतम हो गया ।  विप्लव के जरिए उसे हटाकर वहाँ राजा बना दिया गया ।
उसने कई बार उन भविष्यवाणियों के बारे में सोचा और मन के मलाल को छुपा लिया..। एक दिन की बात है । वह राजमहल में सोया हुआ था, तभी उस उस तस्वीर की याद आयी  ।  राष्ट्रीय म्यूजियम हाककल में उसकी एक-एक चीज अक्षुण्ण रखी गयी थी । यहाँ तक कि मरे हुए घोड़े की खाल भी !आखिर ढूँढ़ते हुए वह छोटी सी प्रतिमा उसे मिली ।  लौट कर उसने उसे पानी में धोया और कमरे में रखा, वह अचानक सजीव स्त्री में बदल गयी ।
‘महाशय  !’ यह काम पहले कर लेना था  ।’ सुंदर स्त्री ने कहा ।
‘कौन काम  ?’ वह घबराया ।
‘मेरी प्राण-प्रतिष्ठा का ।’ वह बोली, ‘मैं आपकी मदद तो करती ।’
‘क्या नाम है तुम्हारा  ?’
‘इति ।’
‘जो भी हो ।’ वह अदेर बोला, ‘भगवान के लिए वैसा हो जाओ, पहले जैसा थी..मैं इस जीवन के रहस्य-रोमांच से थक गया हूँ । यह जीवन मुझे मेरा लगता ही नहीं ।’
‘राजा की जीवन अपना होता भी नहीं  ।’
‘फिर भी…!’
‘महाराज भविष्यवाणी से अगर आप राजा हो सकते है, तो मैं रानी नहीं हो सकती ? !’ वह मुस्कुरायी, ‘बहुत सी अपूर्व बातों की तरह मैं भी अब आपकी यथार्थ हूँ । अगर यह कहानी है, तब भी और सच है तब भी ।’
‘देवी…यह तुम क्या कह रही हो  ??’
‘महाराज ! जीवन के विस्तार में कई चीजें छूट जाती हैं। आपका अब उस जीवन पर अख्तियार ही कहाँ रहा…?’ वह सहज भाव से बोली, ‘भूल जाइए ।’
राजा ने व्यथित होकर कहा, ‘देवी ! लोग जो समझेंआज भी मुझे यह कहानी कपोल कल्पित लगती है । मुझे अविश्वास होता है कि मैं राजा हूँ… मुझे लगता है कोई नाटक चल रहा है…।’
‘यह बहुत स्वाभाविक है  !’
‘क्यों?’
‘भावुकता जब यथार्थ पर हावी होती है,  तो ऐसा ही प्रतीत होता है महाराज  !’ सुंदरी का उत्तर सधा हुआ था ।
‘तो कदाचित मेरा कोई अतीत था ही नही ?’
‘होगा, पर वह आपके वर्तमान जीवन का यथार्थ नहीं है महाराज ।’ वह मुस्कूरायी ।
‘इतना निर्मम न बनो देवी !’ वह तिलमिलाया, ‘मेरे लिए यह कितना विडम्बक है । तुम कैसे समझोगी…स्त्री हो कर ऐसा कहती हो  ?’
‘महाराज राजधर्म भी कोई चीज है…।’
‘मतलब ?’
‘एक बात पुछूँ ?’
‘पूछो ।’
‘वहाँ आप मुझे वर्षों या अब तक कैसे भूले रहे ?’
‘जीवन ने अवकाश नहीं दिया…’ राजा का जवाब सच्चा था, ‘आंदोलन के जुनून में सारे रिश्ते छूट गए,  छूटते गए…।’
‘राजा के पास अवकाश कहाँ होता है…न बाद में और न पहले ।’
राजा निरुत्तर हो गया । राजा को चुप देखकर उसने कहा, ‘महारज अगर राज- काज में आप मेरी अहमियत समझेंगे, तो वहाँ भी मैं आपको निराश नहीं करूँगी ।’ उसने साधिकार कहा, ‘स्त्री कोई भी हो, उसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता ।’
‘ठीक है ।’ उसने परास्त होकर कहा, ‘यह प्रजा का शासन है… प्रजा ही सर्वोपरि है । मेरा अपना कुछ भी नहीं  ।’
समय गुजरने लगा । उसने कई लोक कल्याणकारी कार्य किए । प्रजा में उसकी लोकप्रियता चरम पर थी।एक बार वह पश्चिमी प्रांत की राजकीय यात्रा पर गया । उसने गोपनीय ढंग से तातेती गाँव और सराय का खूब पता लगया, पर ऐसी कोई जगह वहाँ कहीं उस प्रांत में थीं ही नहीं । और न इस नाम के लोग !
यह तो दादी की कल्पना थी । अब क्रौंच- वध से रामायण की कथा का मतलब ? वह तो मिथ है…कथा का उत्स  ! उसका उत्प्रेक !
दादी की कहानी का असली जादू तातेती में नहीं, राजा के लौटने में था । राजा लौटता भी है कि नहीं…आज भी जब सोचता हूँ,  तो हैरान हो जाता हूँ…।
कहते हैं संयोग से राजा लौटा । अपने गाँव जाकर उसने अपनी बीबी और बच्चों को पहचानने की कोशिश की, उसे सब याद भी आ गया । पर उन लोगों ने पहचानने से इनकार कर दिया । उन्हें किसी ने यह बात पहले ही बता दी थी कि उस रात आँधी और बारिश में उसके पिता की मौत हो गयी थी, अन्यथा वह अपनी बीबी के लिए दवा लेकर अवश्य लौटता !

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बहुत से लोगों ने उन अभागों को बाद में बहुत कोसा, जिन्हें यह घुनसुन खबर हुई थी कि राजा इसी गाँव का है ।  उन लोगों ने उसकी बीबी और बच्चों के बारे में यही सोचा कि राज- योग निकट आकर भी निकल गया । उनके भाग फूट गए।करम जल गए ।
‘माँ क्या सचमुच वह आदमी पिता ही थे  ?’  बेटेने भावुक होकर पूछा ।
‘नहीं !’ माँ ने कहा, ‘वह कोई दूसरा ही बडा आदमी था…।’
‘लोग हवा में हांक रहे हैं…।’
‘क्या ?’  माँ चौंकी ।
‘कि राजा हमारा पिता था ।’
‘राजा किसी का पिता नहीं होता पुत्र…।’
‘मतलब ?’  इस बार बेटा चौंका, ‘मैं समझा नहीं ?’
‘उसकी कई बीवियाँ और पुत्र होते हैं…।’  माँ ने बेलाग भाव से कहा, ‘इसलिए उसे पहचानने से भी कोई लाभ नहीं होता ।’
‘तब तो हमें मलाल करना भी नहीं चाहिए ।’
औरत ने बेटे से छिपा कर आँखें पोछीं और फिर कहा, ‘बिल्कुल नहीं ।’


(प्रिंसिपल, पूर्णिया महिला कालेज, बिहार, भारत । कई उपन्यास एवं कहानी संग्रह प्रकाशित)
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