होली विशेष आलेख

गे दाई गे दाई आई तऽ सुरुज भगवान मुँहे पर इजोत धऽ देने छथिन । गे दाई कतेक अबेर भऽ गेलै । आई तऽ बाबू उखेल पुखेल देथिन हमरा खानदानके । हे देखियौक इ हिटलर आ महादेबके जोड़ी पियास सँ माँ माँ कऽ रहल अछि । देव रे देव कोन घड़ी इ किशना संगे गाँठ जुड़ल नहि जानि । आइ बड बात सुनायत ई किशना । हे….(इम्हर उम्हर ताकैत ) बाबू बुझाया जे अंगना नहि आयल छथि । पहिने जल्दी सन इ महादेव आ हिटलर के सानि पानिके व्यवस्था कऽ दैत छी नहि तऽ ई दुनु बरद कोनो किशना सँ कम अछि । सदैरखन बात सुनाबैत अछि हमरा । बाबू सभकिछ बर्दाश्त कऽ लेथिन मुदा ई हिटलर आ महादेवमे कनेको देरी नहि हेबाक चाहि ।
हे लिअ जल्दी जल्दी जल्दीमे अपना दिया तऽ किछु कहबे नहि कयलहुँ । हम जगतपुरवाली । माए बापके माथक बोझ छलहुँ जे किछु नहि देखि बखारी देखि वियाह कऽ देलक अहि किशनाक संग । अनपढ़ किशना । जकरा हमरा सँ कोनो मतलब नहि अछि । हमर काज भोरे भोर बरदके सानि पानि घर अंगना भनसाभात । दुपहरियामे धान गहुमके सुखेनाई लारनाई । कुटनी पिसनी । दाइल दररनाई आ कनी मनी छोटकी काकी सँ गप्प शप्प करनाई । हँ हमर पितिया सास । कनी मनी हुनके चलैत अछि हमरा घरमे । बाबू हुनकर बड़ बात मानैत छथिन । कहादुन हमर साउस बड़ा होशियार आ बुधियार रहथिन । मुदा अभगला ई किशना हमरा कपारमे छल तऽ साउस पहिने चलि गेलिह आ घर भऽ गेल उदाम । कहै छै न जे घरक शोभा जनिजाइत सँ होइत अछि ।
जाहि घरमे कोनो जनिजाइत नहि ओहो कोनो घर भेल । मुदा हमर नसीब हमरा भागमे इहे बखारी आ किशना लिखल छल । तऽ करम कुटि रहल छी आ दाइल दरैर रहल छी कि बिचैमे छोटकी काकी कहेत छथिन जे- हे जगतपुरवाली अहिबेर कहादुन बड़का मेला लागत अपना गाममे । कालीपूजा कहादुन बड़ा धुमधाम सँ मनावौल जायत । हम कहलहुँ- कियाक मोन जरबै छथि काकी ? कहिया हिनकर जाउत हमरा मेलामे लऽ जायत अछि ? कहुँ तऽ भरिगामक कनिया बहुरिया मेलामे जायत अछि । साज सिंगार करैत अछि । हिनकर किशना भरिदिन ठहनाइत बौआइत रहैत छनि । आई अहि गामक मेला तऽ आई ओहि गामक मेला । बजरखसुआ अपना सभटा सेहंता पूरा करैत अछि आ हम जँ कहि दियौक तऽ देखथुन न ।
आब अहिपर छोटकी काकीके बोली धुरिजाउँ । हम सभ कोनो अहाँसभ सन छी । ए अहाँ सभ किछु कहैत छी अपना अपना घरवलाके ? आउ हम सिखादेत छी ।
हम कहलहुँ- ‘दोसरीखन सुनबैन आई बड़ा अबैर भऽ गेल छल । फेर सांझखन एतैन हिनकर दारुपिबा जाउत । नहि जानि कोनो मेला ठेलामे खा पीके ऐतैन आ की रातियो पहर एत्तै कि नहि ?’
जहिया सँ विवाह भेल सभदिन अहिना बितैत अछि । किशना कहियो हमरा दिस दिनखन नहि देखने अछि । ओकर अप्पन अलग दुनिया अछि दारु आ बजारके । जाहिमे हम हेरायल आ ओझरायल छी । बाबू सभ बात बुझैतमे हमरा कहैत छथिन जे कि करबै ? बिन माएके बच्चा छल । ओ तऽ धन कऽ छोटकी भौजी नहि तऽ इ कत्तहुँ बाँचितै ? अबंड भऽ गेल अछि । एकटा धियापुत्ता भऽ जेतै, जिम्मेदारी पड़तै तऽ अप्पने जमीन पर आबि जेतै ।
मुदा नहि जानि ओ दिन कहिया एतैक ?
हम भरिदिन मशीन सन काज करैत छी । किशनाके खेनाई आ राइतके बाहेक हमरा सँ कोनो मतलब नहि अछि । कहियोकाल बड़ अखरैत अछि । कियौक तऽ होइ जकरा सँ मोनक बात करि । कियो तऽ स्नेहक नजरि सँ देखैक । ककरा लेल साज सिंगार करि ? एतबे तऽ चाहैत छी किशना सँ । कहियोकाल किशना दिनमे खेनाई खेबाक लेल आबैत अछि हम बनि ठनि कऽ तैयार होइत छी जे एकहुँ बेर ओ देखत तऽ किछु कहत मुदा वाह रे हमर करम । ओ कियाक देखत ? ओ तऽ मेला ठेलामे सभके देखिक निहाल रहैत अछि । लिअ नाम लेलहुँ आ किशना लडखडाइत हाजिर भऽ गेल ।
गे दाई आई तऽ दिनेमे पीने अछि … दारुबाज नहि तन ।
मोन तऽ होइत अछि- ‘धुरि एहन जीवन सँ तऽ मरि जयतहुँ ।’
किशना आवाज दैत अछि- ‘ए आई भनसा नहि भेल छै ?’
‘नहि, आई अबेर नहि भऽ गेल छल हमरा ? ’ हम कहलहुँ
कनिक समय लगतै ।
तऽ अप्पने खा लिहे ।
आ हँ सुन…..
रातिखन हमर संगी ललन खेबाक लेल आयत । खेनाइ खुब निक से बनबिहे ।
हँ हँ हम तऽ नोकर छी ने । फरमान जारी सभकिछु हाजिर ।
हे हम कहि देने छिऔक । सभकिछ सुनबौ अप्पन संगी साथीक बारेमे किछु नहि ।
भूख लागल अछि ला…. जेहे भात तीमन छौक ।
भात बथुआके झोर आ आलुके सन्ना छैक ।
हँ हँ ला । भीखमंगा घरक बेटी अहि सँ बेशी की बनायत ?
सांझखन हम कनीमनी तैयार छलहुँ कि छोटकी काकी देखैत बजलीह- परी सन अछि हमर बहुरिया मुदा ई किशना…? बहुरिया कियो आबै बाला छै कि ?
हँ एकर संगी । आब एकर संगी साथीके सामने तऽ देखेवाक अछि ने जे किशना हमर केतेक ध्यान राखेत अछि ?
ललन शहरी गबरु जवान । अहिबेर बहुत सालके बाद गाम आयल छल । काली पूजाके समय छल ।
खेनाई खाइतकाल ललन हमरा देखि कहलक- किशन भौजी तऽ बहुत सुन्दर छथिन आ संगहि खेनाइ सेहो बहुत निक बनेने छथिन । बहुत जोरगर भाग छल तोहर । आ हमरा मजाकमे कहलथि जे- भौजी अहाँके कोनो अहिं सन बहिन नहि अछि ?
किशना हमरा दिस ताकैत बाजल- जकरा लगऽ जे रहैत अछि ने ओकरा ओ नहि निक लागैत अछि । तोहर वियाह नहि भेल छोैक ताहि सँ । अरे मेलामे एक पर एक रहैत अछि ।
ललन हमरा दिस देखिक बजलाह- भौजी अहिबेरक मेला बहुत निक लगतै । अहाँ सेहो अहिबेरक मेला देखब । ए किशना अहिबेर भौजीके सेहो अप्पन गामक मेला देखाबैके अछि ।
पहिल नजरिमे ललनके हम आ हमरा ललन निक लागल । दु चारि दिनमे एकबेर ललन आबैत रहैत छलाह । हमरा ललन सा बात करनाई हुनकर गप्प सुननाई निक लागैत छल । मुदा गामक बात बुझबै करेत छी । तीलके ताड़ बनि जायत अछि । गाममे ललन आ हमर बातके गुनधुन गुनधुन होमय लागल ।
छोटकी काकी बुझाबैत कहलीह- आईकाल्हि ललन बौआ बड आबैत अछि अंगना दुआरिमे । हे जगतपुरवाली सम्भारिके । कहि प्रेम तऽ नहि भऽ गेल ?
हम कहलहुँ- हँ काकी भऽ गेल अछि । प्रेमक कोनो परिभाषा होइत अछि ? दुटा अप्पन मोनक गप्प जे किशना नहि सुनैत अछि ललन बौआ सुनि लैत छथिन । दुटा निक बोली बतियात छी हुनका संगे कि भऽ गेल ? किशनाके बानि व्यवहार बुझले छनि । तऽ एतबो सँ जाउ ।
आ हम तऽ नहि जाइत छी बजेवाक लेल ओ आबैत छथिन तऽ किछ समय बिता लेत छी । हमहुँ तऽ आदमी छी जानवर थोडैक छी ।
आई तीन चारि दिन सँ ललन नहि आयल छलाह । रातिखन किशना आयल हम पुछलहुँ- ‘जे ललन बौआ चलि गेलाह की ? आई काल्हि नहि आबैत छथिन अंगना दिस ?’
बस एतबै पुछलहुँ कि चुल्हामे लहलहाइत जारैन निकालि जरा देलक । आ ओहि जारैन सँ मारैत मारैत बाजैत छल-
‘कहुँ तऽ घरक मान मर्यादाके ताखि पर राखि देलक । ओहि ललन संग प्रेम भऽगेल छौक ? सभटा बोखार उतारि देबौक आई । ए तु हमर तुलना करबे । ए हम छी पुरुख पुरुख । हमरा मोनमे जे आयत हम से करब ? जकरा संगे धुमवाक मोन होयत घुमब आ तकर देखादेखी तु करबै ? रखतहुँ तोरा ललना । सारि ओकरा तऽ सिधा कऽ देने छलहुँ आब तोरा सिधा करेत छी । तोहर हिम्मत केना भेल ? मारैत मारैत अधमरु कऽ देलक ।
छोटकी काकी आवाज सुनि हहायल फुहायल एयलिह आ ओ लहलहायत जारैन हाथमे लय बजलीह- आ…. आई तोरो जरा दैत छियौक । मान मर्यादाके सभटा ठेक्का जनि जाति के आ तु बजारमे, मेलामे ओहि मान मर्यादाके बेच ….।
ए लाज नहि होइत छौ जाहि दिन सँ बहुरिया घर आयल अछि एकबेर निक सँ बात केने छी ? ए तु कि बजबै ? एहन सुन्दरी कनिया छौक आ ई ठहनाइत अछि मेलामे ? आ बहुरिया एकरत्ति मोनक बात कि कऽ लेलक ललन सँ तऽ ओकरा कहादुन प्रेम भऽ गेल ? ओकरा नहि चाहि कियो ओकर बात सुनवाक लेल ? इ अप्पन घरवाली सँ हँसबे बाजबे नहि करत आ ओ एकर बाट जोहत ? भाग मना जे जगतपुरवालीके मोन साफ छै दोसर कहिया परा कऽ चलि गेल रहितहुँ ।
दुटा निक बोलीक एहन सजा भेटलै ? जो रे विधना । जनि जातिके भागमे की की लिखल अछि नहि जानि ?
छोटकी काकीके अहि रुपके देखि किशना सहमि गेल आ दुनू मिलक हमरा अस्पताल आनलक ।
कनिकाल बाद बाबू सेहो एयलाह आ किशनाके बुझाबैत कहला- कह तऽ ओ गरीब घरक बेटी अप्पन सभकिछु छोडि़ तोरा संगे बिना किछु कहने सुुनने आबि गेल । पूरा घरके सम्भारि लेलक आ तकर मोजर किछु नहि । ई त सदैरखन दारुके नशामे रहैत अछि । धनके बहुरिया जे घर अंगना बनल अछि ।
किशनाके मुँह लटकल छल । ओ किछु सोचि रहल छल मुदा नहि जानि की ?
एतबेमे छोटकी काकी सेहो बजलीह जे देख किशना- एहन बहुिरया नहि भेंटतहुँ । अरे स्नेहक भूखल होइत अछि जनि जाति ओ जँ भेंट जाइत अछि तऽ ओकरा किछु नहि चाहि । दारुके नशा छोडि़ एकबेर स्नेहक डोरामे बान्हा जाउ तऽ देखियौक जे जीवन केहन सुन्दर अछि । जगतपुरवालीके जरुरत अछि अहाँके स्नेह भरल नजरिके ।
किशनाके सेहो भान भेल जे ओ गलत अछि मुदा एना कियो कहने नहि छल, बुझेने नहि छल । खैर जे भेल से भेल आब एना नहि हेतैक से कहि बाबू आ छोटकी काकीके वचन देलक आ कहलक- काकी अहाँके बहुरिया बहुत निक अछि ।
किशना बेर बेर हाथ जोडि़ हमरा सँ माफी मांगि रहल अछि । हम अधमरु छी मुदा भीतर सँ मजबूत क्यिाक तऽ किशना हमरा संगे अछि ।
(उप प्राध्यापक, रेडियो कार्यक्रम निर्माता, प्रस्तोता एव पटकथा लेखन)
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