• २०८१ असोज २४ बिहीबार

बांटौ काम का थोरी-थोरी

प्रदीप बहराइची

प्रदीप बहराइची

अतना नखरा कहां समाई, घर मा रही कि बाहर जाई ।

एक एक बात बताई तुहका,
जिउ से बढ़िकै मोहाई तुहका ।
तबहूं न विस्वास करव तौ,
कइसे यकीन दिलाई तुहका ।
जिनगी अइसन नाहीं बीती, कवन जतन से तुहैं समझाई ।।

चूल्हा चउका बहुत जरूरी,
एहकय कमी न होई पूरी ।
मिलि जुलि काम करै का सोचौ,
बांटौ काम का थोरी- थोरी ।
सोंच विचार जौ नीक रही,घर मा हर कोई मुसकाई ।।

कालेज कय दिन याद करव तू,
जिउ मा वइसय प्यार भरव तू ।
सात फेरा कय किरिया लिहिव है,
सातव जनम कय प्यार करव तू ।
आपस मा प्रेम बना रही तौ, छोड़ि कय आगे कोई न जाई ।


(बहराइच चर्चित कवि हैं ।)
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