• २०८१ माघ ११ शुक्रबार

ऊख

गोलेन्द्र पटेल

गोलेन्द्र पटेल

प्रजा को
प्रजातंत्र की मशीन में पेरने से
रस नहीं रक्त निकलता है साहब
रस तो

हड्डियों को तोड़ने
नसों को निचोड़ने से
प्राप्त होता है

बार बार कई बार
बंजर को जोतने-कोड़ने से
ज़मीन हो जाती है उर्वर

मिट्टी में धँसी जड़ें
श्रम की गंध सोखती हैं
खेत में
उम्मीदें उपजाती हैं ऊख

कोल्हू के बैल होते हैं जब कर्षित किसान
तब खाँड़ खाती है दुनिया
और आपके दोनों हाथों में होता है गुड़ !


(काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिन्दी में आनर्स पटेल खजूरगाँव, चंदौली, उत्तरप्रदेश भारत निवासी हैं ।)
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