• २०८१ पौष २९ सोमबार

औरत

डा. श्वेता दीप्ति

डा. श्वेता दीप्ति

आज पंडित की शादी है । उम्र होगी लगभग पैतालिस की, इसलिए भी महल्ले में उत्सुकता थी कि उसकी पत्नी कैसी होगी ?
मंगलगान के साथ नईनवेली ने घरप्रवेश किया और इसके साथ ही महल्ले के मर्दों में एक सनसनी सी फैल गई । पैतालिस का दूलहा और चौदह की दुल्हन । गोरी चिट्टी लक्ष्मी अनायास ही मर्दों के बीच सर्वप्रिय हो गई थी । बेचारी कैसे अपने पति के साथ रहती होगी, उसके तो करम ही फूटे हैं ….आदि अनादि ।

वक्त गुजरा तीन ही वर्षों के अंतराल में कमसिन लक्ष्मी जल्दी ही दो बेटियों की माँ बन गई । पति मंदिरों में और भाँग गाजे में व्यस्त और लक्ष्मी अपनी भरपूर जवानी के साथ घर की चाहरदिवारी में बैचेन ।

एकबार फिर महल्ले में चर्चा का विषय लक्ष्मी ही थी । पर इस बार मर्दों के बीच नहीं बल्कि औरतों के बीच । “छिः कितनी बेशरम है, अपने किराएदार से ही रिश्ता बना लिया है । बेचारा पंडित दिनभर पूजा पाठ कर के घर चलाता है और यह घर में रंगरैली मनाती है । लाज शरम जैसी कोई चीज ही नहीं रह गई है । सारा महल्ला बदनाम कर दिया है । इसकी वजह से हमारी बेटियाँ बिगड़ जाएँगी ।” दस जुबान, दस बातें । पर क्या दोष लक्ष्मी का था ?


(डा. श्वेता दीप्ति त्रिभुवन विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य की उप-प्राध्यापक हैँ)
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