• २०८१ कातिर्क ३० शुक्रबार

बोल जमूरा

गोपाल अश्क

गोपाल अश्क

पात्र
मुख्य पात्र : बाजीगर आ जमूरा
सहायक पात्र : आदमी- १, आदमी- २, कवि

दृश्य एक
(बाजीगर आ जमूरा के खाली मंच पर प्रवेश होता । बाजीगर डुगडुगी बजावत नीच लिखल पंक्तियन के चिल्ला-चिल्ला के गावे लागता । एक दू करके लोग आवत बाँड़े आ गोल बनाके खडि़या जात बाँड़े ।)
बोल जमूरा !
केकर भइल
बा मन के पूरा ?
बोल जमूरा !
(खेल शुरू हो जाता)
बाजीगर : बोल जमूरा ! एह मुट्ठी में का बा ?

जमूरा : बेबस गरीब बाप के पीड़ा बा ।

बाजीगर : आ एमे ?

जमूरा : बेटा ला झरत माई के लोर बा
बहू ला राखल लहँगा पटोर बा ।

बाजीगर : बेटा बहू का होला ?
तनिका हमरा के बताव ।
काहे बाड़ चादर ओढ़ले
आपन मुँह देखाव ।

जमूरा : का हम देखाईं मुँह
जीवन हो गइल बा गुँह
कह ना कहीं मेल्ह- माल्ह के ?
आज के कि बात काल्ह के ?

बाजीगर : आरे बुरबक ! आजू के
आस पड़ोस आ बाजू के ।
बेटा- बेटी के हाल बताव
नाती- पोता के चाल सुनाव ।

जमूरा:  हाल त बड़ा बुरा बाटे
जीवन भइल अधूरा बाटे ।

बाजीगर:  केकर ?
माई बाप के कि बेटा के ?
टोपी के कि चादर फेंटा के ?

(तनिका देर शांत रहला के बाद)

बाजीगर : बोल जमूरा !
तूँ त बाड़ी आस-पास
करत बाड़ी काहे निराश ?
काहे मुँह लटकवले बाड़ी ?
मेहरारू ला चाहीं साड़ी ?

जमूरा: साड़ी ? हा–हा–हा–हा–हा
सा रे गा मा पा
तनिका चादर अउरी फइलाव
ताक धिना धिन धा

बाजीगर : ले, चादर फइला दहनी हम
आपन नजर झुका लेनी हम
देख लागल बाटे इहाँ भीड़
मत समय गँवाव, फकीर

जमूरा : एह फकीर के मन निराश बा
भइल जीवन बहुत उदास बा
देख के बाप- माई के हाल
बेटा- बेटी के बदलल चाल ।

बाजीगर : का कहत बाडी तूँ, जमूरा ?

जमूरा : साँच कहत बानी हम बात
दिन में उगल अन्हरिया रात
मुट्ठी में बाँचल राखी
देवता- पीतर अब का भाखी ?

बाजीगर: का बुझउवल बाड़ी बुझावस
सीधे काहे नइखी कहत
दायाँ- बायाँ, ऊपर- नीचे
काहे बाड़ी तू अब बहत ?

(जमूरा चुपा जाता, नइखे कुछो बोलत । भीड़ में खुसुर–पुसुर होता )

बाजीगर: सियावर रामचन्द्र की जय
सियावर रामचन्द्र की जय
ऋण ले- लेके घी पीअत बा
नत- मस्तक जीवन जीअत बा
गौरव के हो क्षय
गौरब के हो क्षय ।

जमूरा- पा लेहनी, हम पा लेहनी
जोर- जोर से चिल्लाएब सन्
ऊ त रहे बिल्कुल नंगा ही
हमनी का अब झल्लाएब सन्

(बाकिर इहाँ सभे नंगा ही बा)

बाजीगर : हम नंगा… तूँ नंगा
नंगा बा ई भीड़
…चुप हो जो
का बकक् ताड़ी ?
का झखक् ताड़ी ?
फूटल बा तकदीर, जमूरा
चुप हो जो !

जमूरा : चुप हो जाईं ?

बाजीगर : हाँ, तूँ चुप हो जो ।

जमूरा : काहे ना सुनाईं, काहे चुप हो जाईं ?

बाजीगर : काहेकि-
समय इहे कह रहल बा
आज के जमाना ही बा अइसन
जे बाप माई के ना निकाले,
ऊ बेटा भा बेटी कइसन ?

जमूरा: एमें जमाना के का दोष ?
बात त रउआ सुननी ना,
सुनके बतिया गुननी ना ।
मूल्यहीनता बढ़ गइल बा
निजता के भूत चढ़ गइल बा ।

बाजीगर: अच्छा, चल सुनाव जल्दी
बाटे हमरा बड़ा हलतल्बी
ना त तोर काल आ जाई
लेवे लगबे तूँ अँगड़ाई ।

जमूरा: अँगड़ाई ! हा–हा–हा–हा–हा
सा रे गा मा पा
अँगड़ाई त लेले बा समइया
ताक धिना दिन धा ।

(उहाँ खडि़आइल भीड में से एगो आदमी तनिका आगे आवता आ कहता-)

आदमी- १:  एकनी कुछ ना बोलिहें सन्
ना मन के आपा खोलिहें सन्
रे भाग बाजीगर, भाग जमूरा
उठा के आपन तम्बा तमूरा

आदमी- २ हँ… हँ…
उठाव सन् तम्बा तमूरा
ना चाहीं तोहनी के कूड़ा
बड़ा ही मूर्ख बनवलक् सन्
हमनी के बड़ा तरसवलक् सन

पटाक्षेप

दृश्य दू

(पर्दा उठता । मंच पर बाजीगर खडि़आइल बा । जमूरा चादर ओढ़ के लेटल बा ।)

बाजीगर: बोल जमूरा !
(नेपथ्य से: का चुप साधि रहेउ बलवाना

बाजीगर: बोल जमूरा !
(नेपथ्य से: जिन्दा- मुर्दा एक समाना

बाजीगर: त देखीं कदरदान, मेहरबान
अपने के बा आपन पहचान
ई जमूरा का पहचानी
चलीं, हम बतावत बानी ।
मोह माया नाम के गीत ह
इहे जीवन के रीत ह
चिरई जब हो जाले अँखफोर
उड़ जाले आकाशे भोर

एगो रंगीन चश्मा
पहिन के देखलस हमर जमूरा
ओही से आधा- अधूरा
बकत बा ई कूड़ा

त, सुनीं कदरदान, मेहरबान
लगभग तीन करोड़ लोग
करत बाटे देश के भोग
तीने करोड़ बाटे समस्या
खड़ा मुँह बवले लेले रोग

आ ई करता आदमी के बात
घात- प्रत्याधात- लोर- बरसात
हम जानतानी जमूरा के
एकर पेट में छुपल छूरा के
ई मन ही मन हँसत होई
हमर तर्क के डँसत होई
बात ई खाली आदमी के करेला
‘वंश- दर- वंश’ से उर भरेला

त, सुनी कदरदान, मेहरबान
अपने हईं नेपाल के संतान
टूटत रिश्ता के बात पर
छोट जमूरा के जात पर
हाँ में हाँ मिलाई मत
ओकर किस्मत चमकाई मत

सुनी एगो रहस्य के बात
दिन के पीछे होला रात
श्रवण बेबिआहल ना रहितें
त का ऊ दुःख दरद सहितें
करइतें का माई बाप के धाम ?
कमइतें का ऊ पुण्य के काम ?
त का भइल घर छोड़ गइल
बेटा हर रिश्ता तोड़ गइल
चल गइल सात समुन्दर पार
भूल गइल बचपन के इयार

(एतने में भीड़ में खडि़आइल एगो कवि मंच पर चढ़ जाता । ऊ बाजीगर, जमूरा आ आदमी के बात सुनत रहल । ऊहो कुछो बोले खातिर आगा बढ़ जाता ।)

कवि: बिल्कुल सही

बहाना बना के जिअल जा रहल बा
फटल जिन्दगी के सिअल जा रहल बा
बहुत दूर बाटे भइल जिन्दगी अब
जहर तिलमिला के पिअल जा रहल बा

कबो फूल बन के, कबो काँट बन के
कबो पोखरा के दुनू आँट बन के
कबो गुनगुना के गजल बन्दगी के
कबो गीत गा के मिलल जा रहल बा

आदमी- २

साँच कहल गइल बा
जहाँ ना पहुँचे रवि
उहँवा पहुँचेला कवि
कविजी एकनी के समझाईं ना
कि कवनो खेला देखावे सन्
कुछो ना कुछ बतावे सन् ।

बाजीगर: खेला का देखाईं सन् ?
मेला का देखाईं सन् ?
तनिका नजर उठा के देखीं
लउक जाई सब खेला
हमनी देश के राजनीति के
लउक जाई झमेला

लउक जाई साहित्य जगत् में
छोटका से छोटका छेद
समझ आ जाई बाटे केतना
एहू दुनिया में भेद ।

आज बकुलन के मिलता
हंस के प्रमाण- पत्र
हर केहू जपत बाटे
निजता के महान मंत्र

(जमूरा के प्रवेश)
जमूरा: हैलो बाजीगर !
…हम जमूरा बोलक् तानी

खूब बोलल दूध के धोअल हमर बाप
खूब मन के भँड़ास निकलल
खूब हमरा के गरिअवल
हई ल, आपन चादर
आ हई आपन चँगेला
हमरा कुछ ना चाहीं
अब ई हमरा छाती पर मुँग ना दरी
अब हम ना कुछ कहेम
हम नइखीं आवे वाला तहरा झाँसा में
हम भीड़ ना हईं कि
सम्मोहन के वश में हो जाएब
हम पूरा के पूरा हईं
आदमी
भीड़ त भेड़ होखेला
चाहे जहाँ हाँक ले जा, चल जाई
बाकिर हमरा के ?
ए हमर बाजीगर बाप !
गलतफहमी में मत रहिअ
त साहबान ! कदरदान ! मेहरबान !
हम दे तानी बयान
बाजीगर के ले लेले होखब अपने पहचान
आपन सुलतान
बाजीगर के जाल र लम्बा भाषण
आश्वासन के पुलिंदा
बच बचाव के ताना- बुना !
सबकुछ बेकार बा

हम त बस एतने पूछतानी
दिल के दौरा के बाद
अबगे इलाज कराके
अस्पताल से लौटल बाप के
कँहरत बिछौना पर छोड़ के
सात समुन्दर पार गइल
का बेटा के धरम ह ?
बाप माई के
जीवन भर के कमाई
हथिया के
बेसहारा कर दिहल
का इहे ओकर करम ह ?

हम का गलत कहनी हँ
जे बाजीगर
एतना खिसिया गइले हँ
ल्गले हँ माहुर बाउर बकोरे ।

(भीड़ में से आवाज सुनाई देता )

आदमी – १: ठीक
एकदम ठीक
एकरा के ठीक कर दे
पकड़ के एकर टीक
जमूरा !
हमनिका तोरा सँगे बानी

जमूरा: माई कहत रहे
जीवन में फूल फुलाई
मिली ना कबो काँट एको
खिल जाई बाग अमराई
बाकिर
ना एको फुल खिलल
ना ही खिलल अमराई
बन गइल जीवन
फाटल जूत्ता लेखा
मिलल दर्द जुदाई ।

…जुदाई ! हा–हा–हा–हा–हा
सा रे गा मा पा
कर मत एतना बखान
का धरती का आसमान
ताक धिना धिन ता
हम त एतने जानक्तानी
एकेगो बात मानक्तानी
…दियरी के बाती अइसन जरे के पड़ी
जिनिगी में जीये खातिर मरे के पड़ी ।

(खेल शुरू हो जाता । बाजीगर लागता ‘ बोल ! जमूरा, बोल ! जमूरा चिल्लाए । भीड़ ताली बजावे लागता)
पर्दा गिर जाता


(वरिष्ठ साहित्यकार । नेपाली भोजपुरी और हिन्दी में निरन्तर लेखन)
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