• २०८१ पौष २९ सोमबार

दो लघुकथाएँ

संजय कुमार सिंह

संजय कुमार सिंह

१. खतरा
‘साँप को मार दिया गया’ आदमी ने उत्साह के साथ कहा- ‘बहुत खतरनाक साँप था । बहुत बड़ा विषधर ! साढ़े तीन हाथ लम्बा !’
‘साँप कहाँ था भाई ?’
‘सड़क किनारे झाड़ी में ।’
‘तो आदमी को क्या खतरा था’ दूसरे आदमी ने कहा- ‘साँप तो झाड़ी में था…’
‘अजीब अमहक आदमी हैं आप’ पहला बिगड़ा- ‘साँप काटने से आदमी मर जाता है । किसी को काट लेता तब ?’
‘यह सही बात नहीं है कि झाड़ी में जाकर कोई साँप मारे ।’ दूसरे आदमी ने साफ- साफ कहा ।
‘मतलब ?’ आदमी अकबकाया ।
‘मतलब साफ है ।’ दूसरे आदमी ने कहा- ‘यहाँ जितना खतरा आदमी से आदमी को है … उतना साँप, बिच्छू और बाघ से नहीं । फिर साँप, बिच्छू या बाघ मारने से फायदा ?’
पहला आदमी लाजवाब हो गया ।

२. आदमी का काम
‘पापा घर से चिड़ियाका घोंसला उजाड़ दें ?’  बेटे ने अचानक उंगली से इशारा करते हुए पूछा ।
‘नहीं बेटा ।’ पापा ने रोकते हुए कहा ।
‘क्यो ?’ बेटे ने सवाल दागा- ‘घर के वेंटींलेशन पर कचड़ा जमा कर दिया है । कितना तो गंदा लगता है ?’
‘बेटा इसमें उनका कुसूर नहीं है ।’ पापा ने समझाते हुए कहा ।
‘तब किसका है ?’ बेटे ने आश्चर्य से पूछा ।
‘आदमी का ।’ पापा ने झटके से कहा- ‘और किसका ?’
‘कैसे ?’ बेटे ने धीरे से पूछा ।
‘ऐसे बेटे कि आदमी ने चिड़िया के सारे जंगल काट लिए ।’ पापा ने कुछ पल सोचने के बाद कहा- ‘अब वे कहाँ जाएँगे ? न जंगल है उनके पास, न नदी और न आसमान । सब पर आदमी का कब्जा ! दाना- पानी की किल्लत में वे इधर रहने आ गए ।’
‘ उन्होंने खुद से तो अपना जंगल नहीं बेचा होगा ?’ बेटे की जिज्ञासा सही थी ।
‘नहीं… नहीं, वे क्यों ऐसा करते, उन्हें क्या पड़ी थी !’ पापा ने अकचकाते हुए कहा- ‘यह पैसा कमाने का खेल है ! सिर्फ आदमी करता है… और कोई नहीं !’
‘चिड़िया को भी पैसा कमाना चाहिए पापा !’
‘क्यों ?’ पापा को बेटे का सवाल अटपटा लगा ।
‘कोई उन्हें उजाड़ता नहीं तब !’
‘कैसे ?’
‘आदमी आता, वह पैसा दे देती आदमी को ।’
पापा अवाक ! अब क्या कहें ! वे बेटे के व्यंग पर रूखी  हँसी हँस कर रह गए । बेटे को आदमी का काम ठीक नहीं लगा था । वह आदमी के काम से सचमुच दुखी हो गया था !


(प्रिंसिपल, पूर्णिया महिला कालेज, भारत)
[email protected]