• २०८१ श्रावाण ११ शुक्रबार

मिल का पत्थर

ध्रुव जोशी

ध्रुव जोशी

मिल के पत्थर के तरह इन्तजार में था मैं
तेरे आने से तसव्वुर को रवानी मिली है
चमन में पतझड हरतफ पसरा हुआ था
साथ आए आप बहार फूल बरसाने लगा है ।

तुम जो मुझे मिले थे बिरानियों में
बहती हवाओं से मैं उलझ गया था
मेरे महबूब के जुल्फों को बिखरा कर
ए हवा वक्त बे वक्त बहना बन्द कर ।

घनेरे बादलों का किस्सा न सुना अब
काली जुल्फों का साया मुझे मिल गया है
छोड दे नदियों की चंचलता वयां करना
मुझे समन्दर का राज-ए-गहराई मिल गया है ।

जुगनू और अँधेरे का अफसाना न सुना अब
आसमान से चाँद मेरे छत पर उतर आया है
खिरामा खिरामा वो मेरे घर जो आए
काइनात की सारी खुशियाँ आँगन मे सिमट आई है ।

गुलाब के फूल को लजरते होंठों से तुमने छुआ
डालियाँ सुर्ख होकर सब झुकने लगी
हिमाकत की मैने हर पंखुडियों पर
अपना लव छुपाकर रख दिया था मैने ।

वतन के दीदार को महरूम हूँ मैं
फुर्कत की खलिश दिल में उठती है
रूबरू तुझ से होने के खातिर
तुम्हरी खुशबू समेट के रख लेता हूँ मैं ।

सागर की लहरें भी मिटा न सकी
अविरल बहती उत्कट अभिलाषा को
रूप को छन्दो में सजा कर इन्तजार में
मिल का पत्थर बन खडा उसी मोड पर ।


(जोशी पेशा से कृषि वैज्ञानिक हैँ, वे पत्रकारिता के साथसाथ साहित्य सिर्जना भी करते हैं ।)
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