जिनगी के चारों कोना से, खोजी सुख के दाना ।
कहीं बिपद के परछाई बा, कहीं कपट जमाना ।।
मुरझाइल आशा के पल्लव, कबो बनल हरियाली ।
भाग्य कबो बा समझल मुश्किल, दियरी बिनु देवाली ।।
धूरा धूरा झाड़त बानी, तबहूँ फोहर कोना ।
संतोषी मनवा केकर बा, सबका सुख के रोना ।।
निष्ठुर छलिया मनवा भागे, चलत पवन के रोके ।
कइसन मूरख जिद्दी पगला, तीर हिया में भोके।।
सार जगत के रामायण में, बरत रहेला जोती ।
जे भी पालन धरम करम के, कइलख बाटे मोती ।।
(शिक्षिका । नेपाली हिन्दी भोजपुरी में लेखन वीरगंज)
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