• २०८१ मंसिर १७ सोमबार

खिड़की

इरा ठाकुर

इरा ठाकुर

महानगर के खिड़की
आरो बालकनी म बैठी क
जखनी देखै छियै
ऊपर आसमान के तरफ
त देखाय पड़ै छै
सिर्फ मुट्ठी भर आकाश
तब्बे बहुत ही ज्यादा
याद आबै छै गाँव

आँगन म खटिया पर
लेटी क आसमान क देखना
आरो चाँद तारा क निहारना
आरो याद आबै छै ओकरा
गिनै के असफल कोशिश
रोपनिया के घोघी ओढ़ी क
धान रोपतें हुवे मधुर गीत
आरो आम के गाछ पर
बोलतें हुवे कोयल के
मिट्ठो आवाज भी
बहुत याद आबै छै
याद आबै छै आपनो
निश्छल निडर बचपन


(स्वतंत्र लेखन, बंगलोर, भारत)
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