• २०८१ माघ ११ शुक्रबार

यादें तुम्हारी

संजय कुमार गिरि

संजय कुमार गिरि

याद तुमको बिन किये रातों को सो सकता नहीं
भूल जाऊं याद करना ये तो हो सकता नहीं

छोड़ दूं तुमको अकेला यूँ कहीं मझधार में
बेसबब आँखें तुम्हारी मैं भिगो सकता नहीं

दोस्तों पर आज तक मुझको भरोसा ये रहा
बीज नफरत के कभी यूँ दोस्त बो सकता नहीं

कितनी मेली हो रही है आज गंगा देखिये
लाख चाहे आज इंसा पाप धो सकता नहीं

कैसे पाएगा जगह वो वीर दिले- महबूब में
दामने दिल को जो अश्कों से भिगो सकता नहीं

हो गई है रोते- रोते खुश्क आँखें दोस्तों
रात की तारीकियों में अब मैं रो सकता नहीं


(कवि गिरि पत्रकार एवम् चित्रकार, दिल्ली )
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