झूठी- मुठी सपनवा दिखाएके
पियवा छलेलें हमरा के,
मीठ- मीठ बतिया में फंसाएके,
पियवा छलेलें हमरा के।
दुई- चार दिन नेहिया- स्नेहियां
के बतिया बतियाई के,
मोर पियवा चल गईले विदेश,
हांय राम मोर पियवा चल गईले विदेश ।
करेजवां छछनेला,
अंखिया से लोरवा ढर्र- ढर्र- ढर्रकेला,
कोठवा पे चढ़ी- चढ़ी आसरा जोहिला,
आईल ना कोनो पतिया ना आईले कोनो संदेश ।
पियवा छललें हमरा के !
झूठी मूठी ….
सोना जईसन जवनियां मटिया मिलल जाता,
केतनो भुलाई उनकर बडा याद आता,
भुला गईले मोर सांवरी सुरतियां,
के भा गईल कोनो गोर सौतनियां,
भर देहले जिनगीयां में हमार क्लेश ।
हांय राम पियवा छललेके हमरा के !
झूठी मूठी …. ….. …… ……!
राति–राति भर करिला अपना से बतिया,
गंऊवा के लोगवा कहेला जोगीनियां,
मतिया अईसन मारल देहले पियऊ हमर कि,
उनकरा से बिछड़ के हो गईल पगली जईसन वेश ।
हाँय राम पियवा छलेलें हमरा के,
झूठी मूठी …. ….. …… ……!
(दुहबी, विराटनगर, हिन्दी भोजपुरी में स्वतंत्र लेखन, एक कविता संग्रह प्रकाशित)
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