• २०८१ मंसिर १७ सोमबार

नेनपन

पूनम झा ‘मैथिल’

पूनम झा ‘मैथिल’

हमरा इयाद अछि
वो बाट पर बनाओल
वाउलक घरौंदा
एक दु महलिनहिं
पांच दस महलक डिजाइनर
सुन्दर सन घर ।

नान्हिए नान्हिटा धियापूता
अपस्यांत बनबैत बनबैत
जेना सांचे के घर ।

ओही बाट पर हमआ संगी
झटकारैत स्कुलक लेल
परि जाइत छल अनचोके में
हमर पायरक घसीटपन सँ
ओकर घर पर लात ।

टुटि जाइत छल देवार
छत्त बिछत्त भ’ जाइत छल
ओकर व्यबहार
पहार टुटि परैत छल
हमरा चलते
नेना भुटकाक
निश्छल भावविचार
जेना सांचे हमओकर
तोरि देने होइ संसार ।

टुटि परैत छल वो सब
गारिक मांदे हमरा पर
रंग बिरंगक ओजपुर्ण शब्द संग
जेकर अर्थ
आई बुझाइत अछि
वो नान्हिटा धियापुता
एतेक अर्थवाद छल
ओकर दृष्टि ।
गय राँरी छुछ्छी बेटखौकी
तोहर बापनाना सतपुस्ता
एना ओना हेतौ गयमनभौकी ।

हमबिना घूरि तकने
बढि जाइत छलहुं आगू
ओकर बोलक अर्थ स्पष्ट करबाकधूनि मे
किलासक गेट धरि
बहराइत छल मुंह सँ
मे आइकमइन
हमरा अबेर पहुंचबाक लेल
मास्टरक ओ चुप्पी सन दृष्टि ।

हमधिया छी
नै काज तैयो बहुतकाज
जेकर कोनो ने मोजर
मोनकभ्रम टुटि जाइ छल
जेना ओहि धियापूताकमहल
ओरिआएल बहारल
सम्हारल
हमरे कारण झम्हारल ।

आई वो बाट कहाँ
नेनपन ठाठ कहाँ
जीवनक उधेर बुनमें हरा गेल
सपना
कल्पना
आअपना ।
आई त’ सच्चे केयो किनको
बनलबनाएल घर
तोरि दय छै उधेरि दय छै
जीनगीतबाहक’ दय छै
बेचैन होइ छै ओहि धिये पुताजकां ।

गारियो नञ द’ पबै छै
कियात’ हाबी छै ओकरा पर
अनढन राजनिति
लोकतंत्रक ढकोसला
समाजक विकृति
आबनञि छै
पहिलुकावो दृष्टि
नव सृष्टिमें
हराएलवो दृष्टि ।।
पूनम झा मैथिली


(सामाजिक कार्यकर्ता, उप–सभापति मैथिली साहित्यकार सभा, स्वतंत्र लेखन, जनकपुरधाम)
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