अल्फाज़ो के बाजार में
खामोशी की आवाज़
जो समझते
तमाम उम्र
तलाशते रहे हम ..
हक़िकत से कोसों दूर
तेजी से भागती दौडती
सपनीली दुनियां के
सुनहरे अतीत में
खोयें रहे हम ..
वो तेरे खत
तेरी तस्वीर
किताबों मे पुरानी
चंद सूखे हुए फूलों में जिंदगानी
तलाशते रहे हम ..
अल्फाज़ो के बाजार में
शब्दों के मायाजाल में
कभी भटकते
टूटते तो कभी बिखरते
कभी सब समेटते रहें हम ..
अनकहे जज्बात
एक से अहसास
आंसूओ के सैलाब
दिन रात ही
खोये खोये से रहे हम ..
तमाम तोहमतों
तानें उल्लाहानों
के बीच
रूसवाईयां सभी
संभाले रहे हम ..
ढलती हुई हर शाम
तेरे ख्यालों .. अनकही बातों
यादो के बियाबान में
पथरीली डगर पर
निरंतर चलते ही रहे हम ..
ख्वाबों
ख्वाहिशों
अहसासों को कर जज्ब
रूहानी रिश्ते की
इबादत करते ही रहे हम ..
हमेशा की तरह
दिल में धडकते हुए
खुशबू बन
हर सांस में महकते
दूर किनारों की तरह
साथ सदा चलते रहे हम ..
कुछ इसी तरह
यादों के बियाबान में
एक अनजानी सी आस में
जिंदगी यूं ही
बसर करते ही रहे हम ..
(प्राध्यापक, सामाजिक अभियन्ता । मेरठ , उत्तर प्रदेश, भारत)
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