अन्तस राग द्वेष ईष्र्या का धब्बा कोजा पड़्या रह्या है
ज्यूं का त्यूं,
बारणै निर्जीव वस्तु नै खूब चमकावण लाग्या !
माँ, बेटी, लुगाई, बहन जीवंती जागती गृह लिक्ष्मीयां का
आत्म सम्मान नै धर दर किनारै आ किसी लिक्ष्मी नै थे फेर्यूं
मनावण लाग्या !
विदीर्ण कर भाई को मन कदै मद में हो चूर !
फेर्यूं दर्जी कनै कुण सा नुवा कपड़ा सिलावावण लाग्या !
मिनखपणो सांस तोड़ रह्यो है पग पग पर होकर घायल !
फेर्यूं बो कुण है जि नै भर बाह थे गले लगावण लाग्या !
हर किसी नै निचो दिखावण की होडबाजी सी चाल रही,
फेर्यूं या किस की निजरां में उठनै की कोशिश करनै थे लाग्या !
प्रेम चटाइ बैठ कदै दुःख सुख को पुछ्यो कोनी पाड़ोसी नै
फेर्यूं कुण स स्नेह,भाईचारै की दुहाई थे देवण लाग्या !
खून पसीना सिंचतो गरीब,
पण मुकककण नै है मोहताज
फेर्यूं यह किस फरज चुकावनै को किस्सो जग जाहिर थे करनै लाग्या !
त्यौंहारां की ओट में हो रह्यो वैभवता को हर गठै खूब प्रदर्शन,
फेर्यूं यह किस श्रद्धा भक्ति सूं भगवान नै थे रिझावण लाग्या !
बो बुजुर्ग दीयो अपणैपन का
स्पर्श कै तेल बिना
है बुझ सो गयो
फेर्यूं घर कै कुणै कुणै में कुण सी रोशनी थे सजावण लाग्या !
आओ ई दीवाली कुछ इसा दीया लेकर आवां !
नेह सूं नेह की अमर लौ जलावां !!
तेज म जिकै जकक जावै सब दाग
और रुह तक जगमग कर झिलमिलावण लागै !!!
(कवयित्री, स्वतंत्र लेखन, अध्यक्ष, नेपाल अग्रवाल महिला मंच, धरान, नेपाल)
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