• २०८१ कातिर्क २५ आइतबार

देश

करुणा झा

करुणा झा

शहर- शहर, गांव- गांव, गली- गली एक छै
सबतरि अपराध बढहल सबतरि एक टेक छै

फेसबुक, ट्विटर, अखबार हो कि चैनल सब
खबरि जकां खबरि नै छइ जे छइ सब फेंक छै

बहुत बढहल देश मगर पूरलैक नै आश सबहक
कनेक दिन के लेल एखन प्रगति पर ब्रेक छै

भात- दाईल, तीमन- तरकारी सब महग बहुत
शुभ काज करबाक लेल शुरूए में केक छै

“करूणा” की करती आब जीवन के मोह धरि
सड़क सबटा उबर- खाबर, बनल बहुत लेक छै


(समाज सेवी, मैथिली, हिन्दी में निरन्तर लेखन, राजविराज, नेपाल)
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