• २०८१ बैशाख ६ बिहीबार

बहाव के सामने

डॉ.रामनिवास ‘मानव’

डॉ.रामनिवास ‘मानव’

मैं आज सुबह से ही परेशान हूँ । बिटिया बीमार है । तेज बुखार है । कुछ जुकाम खाँसी भी है । डाक्टर की दवा का भी कोई असर नहीं हुआ । बुखार ज्यों का त्यों है ।
मैं बार–बार उसके माथे पर हाथ रखकर देखता हूँ, जल रहा है । फिर उसके हाथों को अपने हाथों में ले लेता हूँ । प्यार करता हूँ । सान्तवना भी देता हूँ, ‘चिन्ता की कोई बात नहीं है । बहुत जल्दी ठीक हो जाएगी हमारी बिटिया । बुखार तो आता ही रहता है ।’
मेरे प्यार की गर्माहट से वह आँखें खोल देती है । आँखें लाल हैं, लगातार पानी बह रहा है । वह मुस्कुराने की चेष्टा करती है । फिर धीरे से कहती है, ‘डैडी, जी करता है, बीमार ही रहूँ ।’
‘क्यों बेटे ?’  मैं  हैरान होकर पूछता हूँ ।
‘जब बीमार होती हूँ, तो आप मुझे भी आशु भैया जितना ही प्यार करते हैं ना ।’  बिटिया स्पष्ट करती है ।
मैं सन्न रह गया । बेटी की अदालत ने मुझे अपराधी घोषित कर दिया था । बेटे- बेटी में मैंने कभी कोई अन्तर नहीं किया । लेकिन, दो वर्ष छोटा होने के कारण, बेटे आशु के प्रति कुछ अधिक लगाव होना स्वभाविक है । निशि ने उसे अपने प्रति भेदभाव समझ लिया था ।
मैं उसे कस कर भींच लेता हूँ । मुझे लगता है कि यदि मैंने अपनी पकड ढीली कर दी, तो उसकी आँखों से उमड़ने वाली जल-धारा मुझे भी बहा ले जाएगी ।


(नारनौल, हरियाणा निवासी ‘मानव’ प्रसिद्ध साहित्यकार हैं, तीस से अधिक कृतियाँ प्रकाशित और कई सम्मान से नवाजे गए हैं । )
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