• २०८० मंसिर १५ शुक्रबार

एहसास

लालिमा घोष

लालिमा घोष

कुछ एहसास हुआ दिल में
एक आहट सी हुई मन में
दस्तक दिया था किसी ने
एक चाहत भरी नजरों ने

वह प्यार अजनबी था
इशारे दिल छू रहा था
तन मन में उमंगे थी
सावन की घटा छाई थी

होठों पर मुस्कुराहट थी
चुप्पी, पर दिल प्यासी थी
निगाहे बयां कर रही थी
चेहरे पे मासूमियत थी

पर नादान आंखें चुप थी
कहना कुछ चाह रही थी
शरम से वो झुक रही थी
पर प्यार की दीवानी थी

वो मौसम भी सुहाना था
बस अब क्या सोचना था
जमाने का ना कोई गम था
सिर्फ प्यार में ही खोना था ।
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(स्वतंत्र लेखन, हावड़ा, पश्चिम बंगाल)
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