गीत

हिजरत ही उसकी किस्मत बनी । जब छोटा था, सिर्फ १२ साल का, वो भाग चला घर से कुछ पैसे चुरा कर, वजह थी सौतेली माँ, अपनी जननीको खोया था लम्बे अर्से पहेले । पिताजी लाचार थे । दिल्ली में उसे आसरा मिला, सेठ दीनदयाल के घर । उसने सेवा की । दीनदयाल नाम के ही दीनदयाल नही थे, काम से भी थे । उस गैर नाचीज को स्कूल में दाखिला किया । गृहसहायक बना । सुबह साम घर काज, रात को पढता था । सेठ की लुगाई भी बहुत अच्छी थी । प्यार से पुकारती थी ! बच्चे तीन थे, दो पुत्र एक पुत्री । छोटी बेटी । “वसुन्धरा” बसुन्धरा पटेल । दो बडे भाई, कमल पटेल और रवि पटेल । देहरादून में पढ्ते थे । “आज तक इस लडके ने कोई हिमाकत नही की, देखो जिया प्यार से इन्शान को किस तरह फूल बनाया जा सकता है । “दीनदयाल, अपनी लुगाई से ।” “आर्यपुत्र, वो भी तो हमारी ही तरह एक इन्शान ही है, गैर नही माना हमने । अपना देश, वतन भूल कर बैठा है । वापसी की जिक्र कभी नही किया !” जिया बोली ।
कयामत, कोहराम, सायद इसीको कहेते है । सेठ के दोनो ही पुत्र बाइक की हादसा में मारे गये । नेपाली भी फूट फूट के रोया । बेहोश हो गये पति पत्नी । बसुन्धरा और वो लडका मिलकर सम्भाला हालात को । देखते ही देखते बसुन्धरा सयानी हो गयी । खूबसुरत तो थी ही । मर्यादा भी पालन किया । बसुन्धरा २५ और नेपाली बाबु ३० का । “वीरु, तूम हमें छोड कर तो नही जावोगे न ?” जिया ने पुछा । “माँजी, ये आपने क्या सोच लिया ? मैं कोई पराया हूँ क्या ?” दिल पर तस्कीन मिली जिया को । दिलेर तसल्ली कभी कभी गहरा घाव भर देती है । “वीरबहादुर नेपाली” की मिजाज और लेहजा उन्हे भाया । मकबूल थे दीनदयाल । बेटी की हाथ मागने ढेर सारे लोग आये । एक रात,”जिया, क्या हम वीरुको अपना दामाद नही बना सकते ?”
“आर्यपुत्र, कुछ दिनों से मैं भी यही सोच रही थी । बेटी पढी लिखी है । उसकी अपनी जिन्दगी है । उससे पुछ कर ही तय करना उचित होगा !”
“वो माँ, मेरी चाहत है वो । देवता जैसा है । मुझे कोई एतराज नही ! पर वो क्या सोचता होगा । ? दिल ही दिल में मैने उसे “प्रीतम प्यारे” नाम रखा है । वो गाता अच्छा है । दीवानी मीरा, आपकी बेटी ।” हो गया शादी । पार्टी में आये एक प्रोफेसर बोले, जब उन्हे दोनोका नाम पता चला तो, “किसी ने सच कहा था !” “क्या कहा था ?” दोस्त बोला, वो भी प्रोफेसर ही था । “देखो भई दुल्हा” वीर ” दुल्हन ” वसुन्धरा ” ” वीर भोग्या वसुन्धरा !”
धनराज गिरी