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पहाड़ मानों पिता स्वरुप है
दृढ, सशक्त, विस्तृत अटल,
तमाम बाह्य झंझावातों को झेलता,
परिवार को सुरक्षा और
ठहराव प्रदान करता हुआ
एक मजबूत घेरा…!!
नदी, एक माँ-
तरल, सजल, विह्वल, चंचल
हर तरफ बहते हुए भी
अपनी सारी गति और सामथ्र्य लगा
सूखी, अतृप्त धरती की तरफ बहती,
उसे नम बनाने में लगी एक सतत धारा !!
फूल-पौधे छोटे बच्चे
मासूम, कोमल, सुन्दर, सुगन्धित
रूखे जीवन में रंग बिखेरते,
स्वार्थी दुनिया को देवत्व का
एहसास कराते एक कोमल, रंगीन स्पर्श !!
प्रकृति निश्चय ही एक परिवार स्वरूप है
कभी बीज बनकर तुम्हारी संतति में
फलती फूलती हुई
जड़ बनकर पीढि़यों की
धमनियों में गुणों की नमी रखती हुई
तो कभी शीतल बयार बनकर
दुखते रगों को सहलाती हुई,
जिससे सुरक्षित रह सकें तुम्हारी नस्ल,
कोमल रह सकें तुम्हारा मर्म और
सजल शीतल रह सके अंतर्मन !!
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(स्वतंत्र लेखन मस्कट, ओमान)