• २०८१ असोज २९ मङ्गलबार

बताई मत

डॉ.विभा रजंन (कनक)

डॉ.विभा रजंन (कनक)

दिल के दुःख केकरो अब बताई मत,
केकरो के आपन दुखड़ा सुनाई मत ।

केहु समझे वाला नइखे राउर दरद,
झुठहीं के आसरा अब लगाई मत ।

हँसे वाला हजार मिलिहें जगत में,
बाकि रउरा केहु पर पतियाई मत ।

कहे के बहुते लोग आपन कहेला,
ई कहके अपना के भरमाई मत ।

आपन भाग में जेबा उ मिलबे करी,
अधिका खातिर कबो ललचाई मत ।

बडा भाग से होला मानुष–जनम,
खेल–खेल में एकरा के गंवाई मत ।

भाग से अधिकाआ समय से पहिले,
जे कहेला ओकरा पर पतियाई मत ।

जे रउरा किस्मत बा उहे ता होखता,
आपन मन के अधिका भरमाई मत ।

जे भी करि उपर वाला निके करी,
दोसर के देखि रउरा इरसाई मत ।

कबो त धरिहें भगवान आपन हाथ,
बस अब खुल के मांगी लजाई मत।

जिनगी में सुख दुःख लागले रहि,
परीक्षा देवे में कबहुँ घबडाई मत.!

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(स्वतंत्र लेखन, नई दिल्ली, भारत)