• २०८१ मंसिर १७ सोमबार

मन से मन का मेल ही राखी का सन्देश

आरती अशेष

आरती अशेष

सावन लाया मेघ संग बारिश का उपहार ।
तीज, कजलियां साथ में राखी का त्यौहार ।।

हरी–भरी हैं सब दिशा, बुझी धरा की प्यास ।
नैहर आईं बेटियाँ, लिए मिलन की आस ।।

बाबा के अँगना बसा यादों का सँसार ।
माँ के आँचल की महक, भाई की मनुहार ।।

आई श्रावण पूर्णिमा लेकर हर्ष अपार ।
स्नेह और सद्भाव का यह अनुपम त्यौहार ।।

रंग–बिरंगी राखियाँ, मेहँदी वाले हाथ ।
रेशम भरी कलाइयाँ, अक्षत–कुमकुम माथ ।।

जी भर कर आसीसती, गाती मङ्गल–गीत ।
बहन करे शुभकामना, बनी रहे यह प्रीत ।।

कच्चे रेशम से बँधे हैं अटूट सम्बन्ध ।
बनकर कभी न टूटते आत्मा के अनुबन्ध ।।

कोरोना ने किस तरह, बदल दिए हालात ।
पर्वों के उल्लास बिन फीके हैं दिन–रात ।।

नियति परीक्षा ले रही, बहनों की इस बार ।
दूरी से लेकिन कभी, कम होगा ना प्यार ।।

आत्मीयता के पर्व से जुड़ा रहे परिवेश ।
मन से मन का मेल ही राखी का सन्देश ।।

(स्वतंत्र लेखन/ देहरादून, उत्तराखण्ड, भारत)
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