• २०८१ भाद्र २५ मङ्गलबार

बुद्ध होता हुआ इश्क

 सरिता सारस

सरिता सारस

मैंने देखा है…
जमता हुआ इश्क.
और
पिघलता हुआ इश्क.
और
इसके बीच
टूटती हुई एक महीन रेखा…

देखा है….
पुरुष होता हुआ इश्क.
और
स्त्री होता हुआ इश्क.
और ..
उसके बीच
अद्र्धनारीश्वर होता हुआ एक भाव…..

महसूस किया है….
फिराक. के वक्त
आंख में रक्त–सा
जमता हुआ इश्क…..

देखा है…..
नदी में डूबता हुआ इश्क.
और
सागर में तैरता हुआ इश्क.
और,
उसके बीच
झरने सा बहता हुआ आनन्द

देखा है मैंने….
कबीर होता हुआ इश्क.
और
बुद्ध होता हुआ इश्क.

न जाने कितने रूपों में तुझे
ऐ इश्क….!!
महसूस किया है मैंने ।

जब लगा कर तुम्हें सीने
से
पूरा अस्तित्व झूम उठा ..
मुझे एहसास हुआ!
इश्क. को हर रूप में चाहिए,
इश्क. …

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