• २०८१ भाद्र २७ बिहीबार

अनुभूति

बसन्त चौधरी

बसन्त चौधरी

कविता का मधु रस
उसका अनोखा
अनुपम स्वाद
जब मुझमें समाता है
एक अलौकिक
आनन्द दे जाता है

अन्धकार का रास बन जाते हैं
मेरे छन्द, मेरी कविता
तृप्ति का मधुमास लुटाते हैं
किन्तु इस मधुमास में भी
मेरे होंठ, हृदय सुखे हैं
मैं सहारा का शुष्क मरुस्थल
युगों-युगों से प्यासा हूँ,
और आज भी
प्यासा ही हूँ ।
इस प्यासे मरुस्थल में
कुछ बहकी-सी और लरजती
आन्तरिक वाणी
जो तुमसे गुजर कर
तुम्हें छूकर आती है
वो दे जाती है
एक अनिर्वचनीय
अनुभूति और सुख ।

साभार: अनेक पल और मैं


[email protected]
(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)