वसन्तवेला

“शिष्टी” के जन्म देवे वाली नारी,
राम पैगम्बर के महतारी नारी,
देवता–वीर योद्धा के जननी नारी,
फेर काहे कहेला दुनिया नारी बेचारी ।
सावित्री बनके मौत के हरइनी,
लक्ष्मीबाई बनके अंग्रेज के धूल चटइनी,
त्याग की मूर्ति वात्सल्यता की प्रतिमा,
हमर बलिदान के गवाह ई दुनिया सारी ।
फेर काहे कहेला दुनिया नारी बेचारी !
सति के नाम पर जरायल गयल,
मीरा के नाम पर जÞहर पिलायाल गयल,
सीता के नाम पर अग्निपरीक्षा लिहल गयल,
पर नारी कबो कोनो चुनौती से ना हारी ।
फेर काहे कहेला दुनिया नारी बेचारी !
हम चाह ली त हवा के रुख मोड़ सकिला,
अगर जिदद पर आई जाई त
धरती के नभ से जोड़ सकिला,
लक्ष्मी, सरस्वती, चंडिका लाख रूप
हमर ई दुनिया पे भारी ।
फेर काहे कहेला दुनिया नारी बेचारी !
चलेला हमरे दम से इ जग– संसार ,
अपना के सूखा के भरले बानी
अपनन के जिनगी में पियार,
तबो दुनिया समझेला हमरा के बेकार,
पुरुष से ज्यादा बा हमरा में
सहनशीलता समझदारी ।
फेर काहे कहेला दुनिया नारी बेचारी !