English Poem
शहर की
पतली गली,
बड़ी उदास
डरावनी,
लोग शब्दहीन बेचैन
भ्रम पाले
मकान की
खिड़की से
मुँह निकाले झाँकते इधर -उधर !
पतली गली में
एक दुकान
दुकान पर बैठा
पतला इंसान
संभाल रहा जिम्मेदारियाँ !
चीखने चिल्लाने
या बच्चों की
खिलखिलाने की आवाज़
गली में ही
दफन सी हो जाती
सच कहूँ
पता ही नहीं चलता
क्या हो रहा ?
क्या नहीं ?
पतली गली में !
अशोक बाबू माहौर