• २०८२ पुष ४, शुक्रबार

पतली गली में

अशोक बाबू माहौर

अशोक बाबू माहौर

शहर की
पतली गली,
बड़ी उदास
डरावनी,
लोग शब्दहीन बेचैन
भ्रम पाले
मकान की
खिड़की से
मुँह निकाले झाँकते इधर -उधर !

पतली गली में
एक दुकान
दुकान पर बैठा
पतला इंसान
संभाल रहा जिम्मेदारियाँ !

चीखने चिल्लाने
या बच्चों की
खिलखिलाने की आवाज़
गली में ही
दफन सी हो जाती
सच कहूँ
पता ही नहीं चलता
क्या हो रहा ?
क्या नहीं ?
पतली गली में !


अशोक बाबू माहौर