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आइ रुनाक अबैया अछि । रुना हमर पितियौत बहिन आ संगी सेहो । कहादुन, ओ बहुत बड़का साहित्यकार बनि गेल अछि । हमहुँ पढ़लहुँ ओकर लिखल पोथीसभ । से लगिते नहि छल जे ओ एतेक मिहिन एतेक सुन्दर रचना क सकैत अछि । जमाना बीत गेल …ओकरासँ भेंट भेला । मुदा जहियासँ सुनलहुँ जे रुना गाम आबिरहल अछि तऽ हमहूँ नैहरमे डेराडंटा लगा लेने छी आ ओकर व्यग्र प्रतीक्षामे छी ।
आइ पूरा अंगना नीपल जारहल अछि । चारु दिस ओकरे अएबाक तैयारी चलिरहल छैक । काकी एक भोरसँ अफसियात भेल छथि । कक्का सेहो समय–समय पर घड़ी दिस ताकि लैतछथि । खानपिनक सब इंतजाम भ’ गेल छैक । रुनाक पसिनक सभकिछु बनल छैक । भौजी आ हम उगुतायल छी जे रुना कखन पएर अंगनामे देत ? कखन हम अपन प्रिय संगीकेँ देखब ? होइत अछि जे उडि़के चलि जाइ ओकरालग । एक तऽ रुनाके अएबाक खुशी अछि आ दोसर ओहुसँ पैघ खुशी जे गाममे ओकर सम्मान हेतैक । रुनाक व्यक्तित्वक ई रुपान्तरणदेखि संतोष होइत अछि । मुदा सोचैत छी जे रुनाकलेल आसान नहि रहल हेतै ई नवका सफर । गामक पढ़ल–लिखल सामान्य लड़कीके एहि स्थानतक पहुँचनाइ सहज त किन्नहु नहि रहल हेतैक ।
एकटा समय छल जे रुना बहुत डरपोक छलीह । दूइयो कदम एसगर नहि चलैत छलीह आ आइ देखियौ जे सभठाम ओ एसगरे सफर करैत अछि । स्मृतिमे डूबले छलहुँ कि मोटरगाड़ीक आवाज आयल । सभक संगे हमहुँ दौड़लहुँ दलान दिस । देखलहुँ सुन्दर लाल साड़ी पहिरने रुना एकदम आत्मविश्वाससँ भरल, गाड़ीसँ उतरलिह । कोरामे बौआ छल । ओ हमर गरा पकडि़ कऽ खुब कानल, हमहुँ तीत गेलहुँ नोरसँ ।
हमरा बहुत जिज्ञासा छल जे ई डरपोकी, जेकरा चारिगोटेक आगाँ बाजलो नहि होइत लैकक से कोनाकऽ एतेक बड़का साहित्यकार बनि गेल ? रुनामे गजबके आत्मविश्वास देखलहुँ । रुनाकसँग ओझा नहि औताह से नहि बुझल छल । हम पुछबौ कयलहुँ जे, रुना तु कोना एसगरे आबि गेलहिन ? तोहर सम्मानमे तऽ ओझाके जरुर सामेल होबाक चाहि । मुदा रुना किछु नहि बजलिह मात्र कनिटा हँसी ठोड़ पर पसरिगेलनि ।
जहन खानपीन सभकिछ भऽ गेल तऽ हम मड़बा पर चादरि ओछा ‘एपलिक’ करवाक लेल बैसलहुँ । एपलिक करनाइ हमरा दुनू बहिनकेँ बड पसिन छल । कुमारिमे हम दुनू मिलक कतेको ओछानि आ चादरिपर एपलिक कयने छलहुँ । बस आइ फेर फुरा गेल आ लागि गेलहुँ एपलिक आ घमरथन करबामे । मोनमे बहुत जिज्ञासा सभ छल रुनाके लक । हम टोहलेलहुँ जाहिसँ हुनक प्रत्येक बातमे हमरा रहस्य बुझायल । हुनक बातसभ सुनि हमरा एकटा नव रुना भेटलिह जाहि रुनाके हम चिन्हैत रही ई ओ रुना नहि छथि । ई दोसरे रुना छथि । हम पुछलियनि जे रुना अहाँ कोना एतेक बदलि गेलहुँ ? आ ई साहित्यकार कोना बनि गेलहुँ ? पहिने त अहाँके किछु लिखैत नहि देखने छलहुँ ताहिपर ओ बहुत जोड़सँ हँसए लगलीह मुदा ओहि हँसीमे पीड़ाक आभास स्पष्ट छल ।
ओ बजलिह– ‘किछु बनबाक लेल बहुत किछ छोड़य आ सहय पड़ैत छै । अहाँ नहि बुझबै हम की छोड़लहुँ आ की सहलहुँ ?’
रुना उदास बुझायल । हुनकर बोली भर्रा गेल छलनि । कनीकालके लेल ओ चुप भऽ गेलिह । विवाहसँ पहिनहुँ रुना कम बजैत छलिह आ हम बेसी बाजैत छलहुँ मुदा दुनू बहिन बहुतरास गप्प करैत छलहुँ । हम त ओहि धुनमे छलहुँ जे एतेक वर्खबाद भेंटभेल अछि तँ रुना खुब बात करतिह । हम तऽ मिश्रर जीके बारेमे सभ किछु रुनाके कहलहुँ मुदा ओ चुप रहलि । किछु नहि बाजलि । रुनामे मिश्ररजीसँ भेंटकरबाक कोना उत्सुकता नहि देखलहुँ मुदा हम तऽ उत्सुक छलहुँ रुनाके मुँहसँ ओझाके बारेमे बुझवाक लेल मुदा ओ किछ कहय नहि चाहैतछलि । ओ हरेक बातक जबाब हँ आ हुँ मे मात्र दैत छल जे हमरा पहिनहुँ नहि पसिन छल आ एखनहुँ नहि अछि । बातमे स्पष्टता होबाक चाहि ई हमर मान्यता अछि । रुना किछु परेशान छलि से बुझवामे आयल मुदा ओ किछु कहितथि तहन ने ?
हम कतेको बेर ओकरा कहलहुँ जे तोरे दुआरे हम सासुरसँ आयल छी । नहि तऽ हम एखनि नहि आबितहुँ । तोरा कि होइ छौ ? ओझा कोना छथुन ? घरक लोकसभ केहन छथुन ? मुदा ओ सभटा बातक एकहिटा जबाब दैत छल, ‘ठीक’ ।
गाममे रुनाक सम्मान कार्यक्रममे दू दिन बाँकी छल । तैं हम अवसरके तलाशमे रही जे कोना रुनासँ ओकर मोनक परेशानीक बारेमे बात करी ? भरिदिन काकी, माँ, दाईसभ ओकरा घेरने रहैत छलिह ताहिसँ एकान्तमे बात नहि भ’ रहल छल रुनासँ । ओ त’ जेना पाथर भ’ गेल छल । किछु बजतहि नहि छल ।
दुपहरियाक समय छल । सुन्दर बसात बहिरहल छल । आइ गरमी कनि बेशी छल से रुनाके कहलहुँ – चल आमक गाछीमे कनिकाल बैसब । हम दुनूगोटे गाछीमे पटिया ओछा बैसि गेलहुँ । हमर प्रश्नभरल नजरि ओ पढि़लेने छल, से ओ बुझिगेल जे आइ हम ओकरा नहि छोड़ब । कनिकाल त टालमटोल कयलिह मुदा हम नहि छोड़लियनि, कहलियनि जँ हमरा अपन हितैसी बुझैत छेँ त बता कि बात छैक ? ओ भोक्कासी पाडि़ कऽ कानय लगलिह आ हमरा भरिपाँज पकडैत बजलिह, ‘तोहर रुना हेरा गेलहुँ । आब नहि भेंटतहुँ कतहु । तुसभ बहुत दूर पठा देलहिन रुनाकेँ ।’
हम कनिकाल रुनाकेँ स्थिर होमय देलियै । रुना जहन चुप भेल तऽ पुछलहुँ जे पहिने तऽ अहाँ सत्ते–सत्ते कहुँ जे अहाँ खुश छी की नहि ? अहाँ पाँच बरख पर नैहर आयल छी ? अहाँके मोन नहि भेल जे अपन गाम आबि, सभसँ भेंट करी ? विवाहक बाद लोक सभके एनाकऽ बिसैर जायत अछि की ? हमरो विवाहमे नहि अयलहुँ, कोना पाबनि तिहामे नहि अयलहुँ । हमरमे तऽ छोडू अहाँ अपनहुँ पावनितिहारमे नैहर नहि एयलहुँ से की बात छैक ? हमरा बताऊ, नैहरक लोक आन नहि होइत छैक…। रुना चुपचाप हमर प्रश्न सुनैत रहलिह, कनेकाल किछु नहि बजलिह मुदा बहुत झकझोरलापर कहलिह, ‘तोहर ओझा भरि दुनियाकेँ लेल बहुत निक छथुन, दुनिया–जहानके लेल त हुनका सन निक मनुख नइँ भेंटतहु मुदा हमरासँ नहि । हमरासँ किए एहन बेरुखी ? से बातके जबाब हमरा नहि बुझिमे आयल ।
तहिना घरक लोकके सोच सेहो अजीबे छनि । तोरा बुझल छौ, हम किए पाँच साल तक गाम नहि अयलहुँ ? किए त बड़ा विचित्र माहौल छैक हमर सासुरके । हुनका सभक कहनाइ जे विवाह भेल आब नैहरके बिसैर जाउँ आ तुरन्त सासुरके अपना लिअ । एतेक वर्ष जे हम नैहरमे रहलहुँ सिखलहुँ किछ काज नहि देलक । सासुरके लेल हम अलबटाहि आ बुरबक छियैक । रहल बात तोहर ओझाके त हमरा आ हुनका बीच कोनो खास संबंध नहि । एहि संबंधके कोनो नाम सेहो नहि अछि किए त ने ओ हमरा पत्नीके दर्जा देलथि आ नहिये हम प्रेमिका बनि सकलहुँ ।’
रुनाक बात सुनि हम स्तब्ध रहि जाइत छी । ओ पुनः कहैत अछि, ‘विवाहके ओ कोनो खास बात नहि बुझैत छथि हुनकर कहब जे विवाह किछु नहि छैक । पोथीपतरामे जे किछ लिखल अछि सभ गलत । शुरु–शुरुमे हमरा बुझैमे नहि आबैत छल जे ई एना किएक कहैत छथि ? मुदा धीरे धीरे ओहो किछ सामान्य भेलाह आ हमहूँ सामान्य भेलहुँ आ जिंदगी बितय लागल । विवाहके तीन साल बाद बौआ कोरामे आयल तऽ ओकरेमे मोन लगा लेलहुँ । मुदा मनुखे न छी । कहियो कहियो एसगरमे खुब कानैत छलहुँ मुदा ओ देखियो कऽ अन्जान बनि जाइत छलाह । भीतरे भीतरे हम कुहैक कऽ रहि जाइत छलहुँ । भलाहोइ, ई मोबाइल फोनके जकरा दुआरे माँ बाबूजी आ तोरा सभसँ बात होमय लागल ।
कहै छै जे पत्नीके लेल पतिसँ निक संगी आ पतिके लेल पत्नीसँ निक संगी कियो नहि होइत छैक । हमरा तऽ मात्र हुनक प्रेम आ स्नेह चाहि छल ओहो नहि भेटल । हम उदास रहैत छलहुँ । हुनका लेल केहनो सन नहि ।’ बजैत रुना पुनः हिचकि हिचकि कऽ कानय लागल । हम कि शांत्वना दितियैन से नहि फुरायल । रुना किछ शांत भेलिह तऽ पुछलियैन जे अहाँ कहियो सवाल नहि पुछलियैन जे किएक अहाँसंग एहन व्यवहार ?
हँ किए नहि । बहुतो बेर पुछलियनि मुदा हुनकर जबाब रहैत छलनि जे, ‘अहाँके की कमी अछि ? सभकिछ तऽ अछिये । आब की चाहि ?’ धीरे धीरे हम पुछनाइ छोडिदेलहुँ, बजनाइ बंद कऽ देलहुँ । भीतरे भीतरे जिबैके मोन सेहो मरऽ लागल छल कि एकटा निक संगी भेट गेलिह । आ हमरा जीबैके आधार भेट गेल । ई कहि ओ पुनः कानए लगलिह । हमरा बुझल छल जे हुनकर जोरसँ कानब जरुरी छनि । अपन मोनक पीड़ा बाहर निकालब बहुत जरुरी होइत अछि ताहिसँ हम किछु नहि बाजि चुपचाप हुनका दिस ताकैत रहलहुँ ।
‘एक दिन तोहर ओझासँ हमर किछु झगड़ा भऽ गेल छल । ओ हमरासँ आ हम हुनकासँ बात नहि करैत छलहुँ । ओ नहि बजलाह त कोनो बात नहि मुदा हमरा तऽ घर गृहस्थी चलेबाक रहैत अछि । मान मनुहार, दुलार तऽ के करत ? हारिकऽ अपने बजनाइ शुरु कयलहुँ आ पुछलियनि जे ’ठिके अहाँके हमरासँ एकोरति प्रेम नहि अछि ? जँ होइत तऽ अहाँ एकोबेर त हमरा मना सकैत छलहुँ ।” ताहिपर तोहर ओझा जबाब देलखुन जे “हमरा कामकाजी महिला चाहि छल, ई दिनभरि घरमे पड़ल पड़ल बच्चा पोसनाइ आ टीभी देखनाई हमरा पसिन नहि अछि । आ हँ, हमर विवाह हमरा मोनसँ नहि भेल अछि । ओह ! कतेक सपना छल जिंनगीके लकऽ मुदा हमर सभटा सपना टुटि गेल । आइ जँ हमर विवाह कोनो दोसरसँ भेल रहति तऽ हमर दुनिया किछु आर रहित । हमरा कि भेंटल विवाह कऽ कऽ ? अहाँ सन गवाँर कनिया जकरा किछु नहि आबैत अछि । शहरके कोनो लड़कीसँ विवाह भेल रहति त आर्थिक अवस्था निक रहित । हमर तऽ नसीबे खराब छल । कि कि सपना देखने छलहुँ सभपर घरके लोक सभ पानि ढारिदेलनि आ उठाकऽ अनलनि अहाँ सन सामान्य लड़की । जकरा नहि त चलयके लुइर ने त हँसै बाजैके लुइर । एहिसँ निक त हम कुमार रहितहुँ ।’
‘ई बात हमरा मोनमे गडि़ गेल । मुदा आब की करी से नहि फुराइत छल । प्रत्येक दिन हुनक ऑफिस गेलाके बाद हम खुब कानैत रहैत छलहुँ । मुदा एक दिन हमर एकटा संगी जे घरके बगल में रहैत छलिह ओ बाहर कोनो काज करैत रहथि से घर आयलिह । आ बातेबातमे हमरा पुछलाइथि जे भैरदिन घरमे बैसके मोन लागैत अछि ? हम कहलहुँ नहि लागैत अछि मुदा की करु ? ताहि पर ओ कहलैथ जे अहाँ मैथिल छी, मैथिलीमे किछु लिख सकैत छी ? जेना कथा–साहित्य । पहिने तऽ हम मना क देलियनि मुदा की मोनमे आयल जे कहलहुँ जे हम प्रयास करब ।’
‘तोरा मोन नहि छौ, हम किछु किछु पहिनुहँ त लिखैत रहैत छलहुँ ? से हम प्रयास बहुत जल्दी क लेलहुँ आ एकटा कथा लिखिक अपन संगीके द देलहुँ ।’ हम मोन पारय लगलहुँ । ओ पुनः कहलक, ‘तोहर ओझाक रवैया ओहने रहल आ हमहूँ चुप रहय लगलहुँ । काजके अलाबे हुनकासँ कोनो गप्पशप्प नहि होइत छल । ओ अपनामे आ हम बच्चामे लागि गेलहुँ । एक महीनाक बाद एक दिन हमर संगी एकटा अखवार लक घर अयलिह आ हाँसैत कहलाथि जे हे देखु अहाँके नामसँ ई कथा अखवारमे छपल अछि आ अपना मुठ्ठीमेसं दू हजार रुपया दैत कहलिह ई अछि अहाँके पारिश्रमिक । हमरा आश्चर्य भेल, किए त हम ओ बात बिसरिगेल रहियै । से अहाँ नहि सोचि सकैत छी जे हम कतेक खुश भेलहुँ । तकराबाद आन आन पत्रिकामे सेहो मैथिली खिस्सा लिखी पठाबै लगलहुँ आ छपाइत रहल । किछु दिनक बाद एकटा कार्यक्रममे हमरा बजावौल गेल आ कहल गेल किताब लिखु । ओ सभ मदद करताह । बस हम लागि गेलहुँ अपन कछिु अनुभव समेट किताब लिखयमे । किताब प्रकाशित भेल आ हमर जीवनके जेना उद्देश्य भेटिगेल । किताब अएलाक बाद खूब चर्चा भेलैक । चहु दिससँ हमर खोज होमय लगलै । हम त कहियो कल्पनाधरि नहि केने छलहुँ । एतकधरि जे हमर सासुरोमे चर्चा पहुँचिगेलैक मुदा किनकोमे कोनो फरक नहि । ओ अपन दुनियामे आ हम अपन दुनियामे । बहुत चाहलहुँ जे हुनक हाथ पकडि़ चलि मुदा एकहि घरमे रहि दुनू गाटे अनजान बनल छी । गाममे सम्मानक बात हुनको कहने रहि मुदा ओ ऐबाक लेल तयार नहि भेलथि । हम बुझि गेलहुँ जे हुनक मोनमे हम कतहु नहि छी । तैं हम आगा बढिगेल छी ।’
सम्मान वाला दिन हमरा लागल छल जे ओझा अएबेटा करताह त हम हुनकासँ बात करबनि मुदा ओ नहि अयलाह । मुदा रुना ओहि दिन मजबूत बुझेलिह । सोचलहुँ अपन रस्ता ओ बना लेने छथि जाहिपर चलि ओ बहुत किछु प्राप्त क’ सकतिह । आ समयके संग धीरे धीरे सामान्य भ’ जेतिह ।
कंचना झा मैथिली र हिन्दी भाषामा समान रूपमा कलम चलाउने स्रष्टा हुनुहुन्छ । झाको मैथिली भाषामा कथा संग्रह ‘नव भोर’ प्रकाशोन्मुख रहेको छ । वर्तमानमा उहाँ हिमालिनी हिन्दी अनलाइनको संपादकको रूपमा कार्यरत हुनुहुन्छ ।