• २०८२ आश्विन ७, मंगलवार

अनिल कुमार मिश्रका दुई हिन्दी कविता

तुम

तुम
जब भी मेरे पास आना
पूरा आना
आधे अधूरे आने से
ना तो मित्रता में
स्पंदन होता है
ना रिश्तेदारी
साँस ले पाती है
अपनेपन की हृदय गति
असंतुलित सी हो जाती है
जब भी आना
जिस रूप में आना
पूरा आना
तुम ।

संवाद

संवाद !
तुम कभी हिम्मत मत हारना
तुम्हारे हारने से, मूक होने से
दरकने लगते हैं
रिश्ते
परिवार,समाज,राष्ट्र
और
विश्व के
अंतरंग,मधुर संबंध भी
बिखर जाते हैं
देखते-देखते ।
संवाद !
तुम धैर्य रखना
टूटना मत ।
विनाश को
कभी भी
आमंत्रित मत करना ।


अनिल कुमार मिश्र, राँची, भारत ।