• २०८१ माघ ९ बुधबार

विजेता चौधरीका दुई मैथिली कविता

विजेता चौधरी

विजेता चौधरी

१. विस्फोट हेतैक निश्चय

निराश नहि भेल अछि
हमरा भितरके कवि
बुझैत अछि ओ
निमिष भरिके लेल
आगि ठंढाएल छैक जरूर
मुदा ओ मिझाएल नहि छैक
बस कोनहुँ क्षण
उठि सकैछ
उन्मत्त सिहकी
जे सुनगा देतैक
बेलगाम लुत्ती सभकेँ
आ तहन जे उठतैक धधरा
से चोन्हरा देतैक
सत्ताक पट्टी धारी गान्धारी सभक आँखि
जे लगौने अछि
हजारहुँ वर्षसँ
आँखि पर दासत्वक पट्टी
जेकर दृष्टि नहि खुलैत छैक
कोनो आन्दोलन किवा क्रान्तिसँ
ने कोनो सहादतसँ
ओकरा केन्द्र के दास बनल रहबाक छै
किनसाइत
ओकरा भ्रम भ’ गेल छैक
पुनः नवका जंगबहादुर बला
अस्सीगोट दलाल
भलेहि खेलिगेल हो दाउ
ओकरा नहि छैक परवाह
केन्द्रक मोहरा बनि भजारल जेबाक
नहि छैक सरोकार ओकरा
ओहि माटिक
जेकर पहिचानसँ
सम्मानित होइत रहितैक सन्तती
कथुक सरोकार नहि छैक ओकरा
ने धरोहर, ने संस्कृति आ ने संस्कारक
किए त’ ओ मात्र गोटी अछि
जेकरा नेता बुझबाक भ्रम पालि रहल अछि लोक
मुदा कोनहुँ क्षण
पजरि उठतैक, सेराएल लुत्ती सभ
हम अकानि रहल छी
पुनः चिराइन गन्ध
ई आगि आब
किन्नहुँ नहि करतैक
रस्ताक पाथरके पिघलबाक प्रतीक्षा
बस निकलि जेतैक विस्फोट करैत
ई अदना कविकेँ छैक मात्र आब
विस्फोटक प्रतीक्षा ।।

२. जहन हम साठि के भ’ जाएब

देखियौ ने !
एखनि त वृक्षक डाढि़मे हरियर पात छैक
कंचन-कचोर
फल आ फूलसँ लधल
एहन सम्मोहक कि नजरि ने हटए
फेर शरदके प्रहारसँ
जहन डाढि़ एक दिन नग्न भ’ जेतैक
तहन वृक्षकेर जडि़ये त’ जीवित रखतैक
सम्पूर्ण कायाकेँ
आ फेरसँ करतैक
वसन्तकेर प्रतीक्षा

एखनि अपनहुँसभ त’ ओहि वृक्षक डाढि़सन छी
हरियार-कचोर
मुदा
सुनैत छियै !
जहन हम साठि के भ’ जाएब
तहन अहाँ हमर जडि़केँ कसिक’ जतनसँ पकडि़ राखब
जेना माटि आ जडि़ रहैत छैक एक-दोसरामे समाहित
किछ तहिना
किए त’ अहाँक बूढ आलिगंनकेर गरमाहटसँ
साइत हमरा जीवाक उत्साह भेटय
जीबी लेब एकाध वर्ख बेसी

बचन अछि
हमहुँ राखब अहाँक धीयान बच्चा जँका
धोन्हियाएल चश्माक भितर गड़ल हमर बूढ आँखि
अहिँकेँ त’ ताकत
हर क्षण, हर पल
बस अहिँ त’ मात्र रहब ने हमर चारुभरि
जेना रहैत छैक सुरक्षा कवच
जहन अहाँ बिसरिक’
राखि देबैक कतहु दबाइके डिब्बा
तहन निःशन्देह लोहछियेक सही
मुदा हमही त’ ताकि क’ देब ने
अहाँक सभटा विस्मृतिक समय
आ प्रमेसँ कहब
जे हे यै !
आब अहाँ सठिया गेलहुँ अछि
आ हँसब दुनू व्यक्ति उन्मुक्त भ’
बरु किछिये काल लेल सही,
नमरि जेतैक चोटकल समय
आ मुस्का उठतैक यौवन

चिड़ई के उड़ने आ खोंता के उजड़ने
वृक्ष त’ नहि मरैत छैक
अपनहुँ सभ जीब’
एक-दोसराक लेल

जहन हम साठिके भ’ जाएब
तहन भ’ सकैत अछि
हम लोहछब आ खौंझाएब कने बेसी
बाजब आ पितायब बिनु बातके
किवा अहाँक हरेक बात पर
एखनहु त’ अहाँ सही लैत छी
हमर क्रोधान्ध आ हमर आवेग
बुझैत छी हम
अहुँ त’ रुसी रहब बातबात पर
मुदा मनालेब अहाँकेँ
जेना सभदिन मनबैत आबिरहल छी
आदत अछि हमरा

अहाँ ऋतु आ हम प्रकृति जँका
हर क्षण सम्हारब एक-दोसराकेँ
जहन हम साठि के भ’ जाएब ।।


विजेता चौधरी