• २०८१ फागुन १ बिहीबार

दानव बना मानव

स्मिता श्रीवास्तव

स्मिता श्रीवास्तव

एक था सुन्दर विशाल बगीचा,
बिछा था नर्म घास का गलीचा ।

पेड़ पर लगे थे गोल-गोल आड़ू रसीले,
रंग बिरंगे फूल और पत्ते थे चमकीले ।

बगीचे का मालिक था एक स्वार्थी दानव,
भाता नहीं था उसे एक भी मानव ।

बगिया में खेलने आते थे मासूम बच्चे,
खिल उठती थी बगिया व फूलों के गुच्छे ।

दानव को यह बात पसंद न आई,
बगिया के चारों ओर चारदीवारी बनवाई ।

चारदीवारी पर एक तख्ती भी लगवाई,
बच्चों के अभाव में प्रकृति भी मुरझाई ।

सूखने लगे पेड़ पौधे बेरंग हुई बगीया,
अब न कोई गीत गाती नन्ही चिड़िया ।

दानव को हुआ अपनी भूल का एहसास,
याद आया बच्चों का भोला हास-परिहास ।

दानव ने जल्दी ही गिराई चारदीवारी,
स्वार्थ छोड़ जल्दी अपनी भूल सुधारी ।

बच्चों के लिए खोला बगीचे का दरवाजा,
वसंत झूम कर आया, खूब लगा रंगीन तमाशा ।

दानव और मानव का खत्म हुआ अंतर,
हम सभी प्रेम और मित्रता सीखें निरंतर ।


स्मिता श्रीवास्तव