• २०८१ कातिर्क २२ बिहीबार

मेरी आँखों का नूर

आभा

आभा

लोग कहते हैं
कि बेटे को
ज़िन्दगी दे दी मैंने

पर उसके कई संगी नहीं रहे
जिनकी बड़ी-बड़ी आँखें
आज भी घूरती कहती हैं-
आंटी, मैं भी कहानी लिखूंगी
अपनी

उसकी आवाज़ आज भी
गूँजती है कानों में

बच्‍ची !
कैसी आवाज़ लगाई तूने
जो आज भी गूँज रही है फिजाँ में

ओह !
व्‍हील-चेयर पर
दर्द से तड़पती आँखें वे

वह दर्द
आज मेरी आँखों का नूर बन
चमक रहा है ।


आभा