कविता

बेकल बनल मोन कें हाल की कहुँ
व्याकुल धड्कन कें चाल की कहुँ
जीवन बनल मशीन खाडी परदेश में
जय मिथिला, जय नेपाल की कहुँ
महसुस करै छी ह्रदय सँ अपन माटी
तनमन कें अनगिन्त सवाल की कहुँ
खुन,पसिना बेचै छी सस्ते भाउ में हम
संतानो लै समय नहि मायाजाल की कहुँ ।
उदगार यादब
मिथिला विहारी नगरपालिका
सिरसिया- ६ धनुषा धाम