मेरी मर्जी नहीं पूछी क्योंकि मैं एक औरत हूँ
बस बोझ समझकर विदा किया क्योंकि मैं एक औरत हूँ
पति से पूछ सब काम किया क्योंकि मैं एक औरत हूँ
सब को खिलाकर ही खाया क्योंकि मैं एक औरत हूँ
रखा ससुराल का ख़याल, की परिवार की सेवा क्योंकि मैं एक औरत हूँ
ख़ुद को बस इसमें ही झोंक दिया क्योंकि मैं एक औरत हूँ
प्रताड़ित हुई तिरस्कार सहा क्योंकि मैं एक औरत हूँ
चुप रहकर सब कुछ सहती रही क्योंकि मैं एक औरत हूँ
लेकिन अब मैं बोलूँगी, दर्द अब और मैं नहीं सहूँगी
नहीं मरने दूँगी गर्भ में अपनी बेटी को क्योंकि मैं एक औरत हूँ
क्योंकि मैं एक औरत हूँ ।
आशुतोष सिंह ’साक्षी’ कशमकश