• २०८१ श्रावाण ११ शुक्रबार

कल्पना

अमिता दुबे

अमिता दुबे

कल्पना तुम क्या थीं ?
हवा का झोंका फूलों की महक,
पंजाब की सौंधी मिट्टी की गमक
या आकाश में चमकने वाले तारे की चमक

कल्पना तुम क्या थीं ?
कल्पना तुम थीं शायद
अपनी बहनों और सभी लड़कियों की तरह
माँ के आँगन की चिड़ियाँ
पिता की बगिया की कलियाँ
पंजाब की मिट्टी में उगने वाली फलियाँ

कल्पना तुम क्या थीं ?
कल्पना तुम तो थीं
कल्पना की वह उड़ान
जो हर लड़की
समय की सीढ़ी पर खड़ी
खुली और मुँदी आँखों से
हर दिन उड़ती है ।

कल्पना तुम क्या थीं ?
कल्पना तुम वास्तव में थीं
उस नारी शक्ति का सकार रूप
जो नवीन सृजन के लिए
जीवनोत्सर्ग से भी
नहीं हिचकती ।

कल्पना तुम माँ थीं
नहीं कोपलों को अपने में
सहेजने वाली
शोध–सृजन को नई दिशा
और आधार देने वाली ।

कल्पना तुम कल्पना थीं
माँ–बाप की, देश, विश्व की
नारी अस्मिता की ईश्वरीय आज्ञा की ।
कल्पना तुम कल्पना थीं ।


अमिता दुबे