समाचार

मैं रेतीली,कंटीली,पथरीली
राहों से गुज़र पहुंची हूं
उस मुक़ाम पर
जहां मैं मौन रह
आत्मावलोकन कर
स्वयं में स्थित होना चाहती
ख़ुद से साक्षात्कार कर
उन सवालों के
जवाब तलाशना चाहती
जो बरसों से मेरे
ज़हन में कुनमुनाते, कुलबुलाते
और निरंतर आहत करते
इंसान क्यों आया है
जहान में…
और क्या है
उसके जीवन का प्रयोजन
लख चौरासी में
जन्म–जन्मांतर तक भटकना
और पूर्व–जन्मों के
कर्मों का फल भुगतना
रिश्ते–नातों के बंधन में बंध
निबाह करना
और अनमने मन से उन्हें ढोना
तुम्हारे नुमाइंदों के
आदेशों की अनुपालना हेतु
कठपुतली सम नाचना
उनकी खुशी के लिए सर्वस्व लुटा
अस्तित्वहीन हो कर जीना
हंसते–हंसते जग को अलविदा
कह रुख़सत हो जाना
क्या यही है
ज़िन्दगी का मक़सद
परन्तु मैं संबंधों की दलदल में
कमलवत् रहना चाहती
आंधियां चलें या आएं तूफ़ान
तेरे नाम की पतवार थाम
सागर के पार उतरना चाहती
और तेरे नाम की ख़ुमारी में
अलमस्त डूब जाना चाहती
मैं, मैं से तुम हो जाना चाहती
डॉ मुक्ता, गुरुग्राम, हरियाणा