मेरे जीने का तब सहारा न होता
अगर साथ मेरा तुम्हारा न होता
मुकद्दर पे अपने समंदर है रोता
ये जल काम आता मैं खारा न होता
था मुश्किल बहुत तब सफ़र जिंदगी का
अगर हमने हँसके गुज़ारा न होता
सुधाकर कभी खूबसूरत न दिखता
जो नज़दीक उसके वो तारा न होता
भला कौन कहता यूं दरिया को दरिया
अगर पास उसके किनारा न होता !!
डॉ. पुष्पलता सिंह “पुष्प“
दिल्ली भारत