• २०८१ श्रावाण ११ शुक्रबार

हम रहें न रहें जहां में

रमाकांत शर्मा

रमाकांत शर्मा

हम रहें न रहें जहां में…
पीछे बस्तियां रह जाएंगी ।
कामयाबी के चर्चे न होंगे,
नाकामियां रह जाएंगी ।

दिलकी दस्तकतो न होंगी,
दिल दारियां रह जाएंगी ।
जिस्म तो मिट जाएंगे, पर,
कार गुजारियां रह जाएंगी ।

कहने/सुनने के लिए,
किस्से–कहानियां रह जाएंगी ।
इक दीप बुझ भी जाए तो क्या,
जगकी रोशनियां रह जाएंगी ।


रमाकांत शर्मा
डान्डेली, उज्जैन, भारत