• २०८१ फागुन ३ शनिवार

पापा ऐसे ही होते हैं

डॉ नाज़ सिंह

डॉ नाज़ सिंह

पापा कहते हैं,
कि मां की कोख में आने से पहले
मैं पापा के ख्यालों में आई थी
मां जब प्रसब पीडा से गुज़र रही थी
पापा बगल के कमरे में
ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे
जब मैं पैदा हुईं
पापा पूरे मोहल्ले में मिठाई
बांटकर मेरे लिए दुआएं ले आए थे
मेरे नन्हें से पैरों के छाप से
पूरे घर के दरवाजों पर शुद्धिकरण की
पूजा करवाई गई थी
बेटी के आगमन से अक्सर
पिता बहुत ख़ुश हुआ करते हैं
बचपन में,
पापा हमारे लिए घोड़े बनते थे
कभी हम घोड़े पर सवार होते
तो कभी हमारे साथ घोड़े की वह रेस लगाते थे
घुटनों के वल चलते चलते
पापा हर बार गिर कर हार जाते थे
ताकि मैं जीत सकूं
कन्धों पर बिठाकर मेला दिखाते थे
कुछ खरीदने की हम जिद्द करते
हंसते हंसते ओ सारी चीज़े दिलाते थे
दुनिया के कोई भी पापा गरीब नहीं होते
अपने बच्चों के लिए
बहुत अमीर होतें है
सुपर मैनकी तरह पावर फुल होते हैं
वह हमेशा बड़ा बनना सिखाते है
भले जेब में पैसे ना हों
पर पूरी दुनिया खरीदने का हौसला दिखाते हैं
बच्चों की खुशियां खरीदने में
अपनी पुरी ज़िन्दगी लगा देते हैं
पापा ऐसे ही होते हैं
हां, पापा ऐसे ही होते हैं ।

जब कभी,
हम अच्छा नहीं कर रहे होते
या कोई गलतियां कर देतें हैं
तब पापा नाराज़ हम से रहते हैं
लेकिन गुस्सा मम्मी पर करते हैं
पापा ऐसे ही होते हैं ।

ऐसा नहीं है कि पापा हमसे प्यार नहीं करते
पर, यह सच है कि मां की तरह,
दुलार नहीं करते
हमसे कितना प्यार हैं
शब्दों में कभी बयां नहीं करते
लेकिन हां,
अपनी खामोशी में हमेशा
हमारे ही भविष्य की योजनाएं बनाते रहते हैं
ख़ुद गांव के छोटे से स्कूल में क्यों न पढ़ें हों
लेकिन हमारे लिए आक्सफोर्ड
और केम्ब्रिज के सपने देखते रहते हैं
पापा ऐसे ही होते हैं ।

दुनिया की किसी भी लड़की को
पूछ कर देखो,
कि पिता क्या होता है
उसके जीवन का पहला हीरो कौन है
वह सबसे ज्यादा किस पर विश्वास करती है
किसके जैसी वो बनना चाहती है
पापा की परछाई से ही कितनी महफ़ुज़ रहती है
हर लड़की महारानी नहीं हो सकती
लेकिन अपने पापा के लिए
राजकुमारी जरूर होती है
कल की नन्ही परी आज़
बड़ी होकर जब ससुराल जानें लगती है
कभी नहीं रोने वाले पिताकी आंखें
बेटी के विदाई पर रो पड़ती हैं
हां, पापा ऐसे ही होते हैं ।


डॉ नाज़ सिंह, मास्को, रसिया