• २०८१ फागुन ३ शनिवार

वो भी, क्या दिन थे !

गंगेश मिश्र अनुरागी

गंगेश मिश्र अनुरागी

अतीत की डायरी;
धूल से अटी;
मैली सी, फटी–फटी;
पड़ी मिली, एक कोने में;
अलमारी के।
ज़ल्दी के बाहर,
कई पन्ने, निकल आए थे;
अपनी बदहाली के साथ;
पुरानी यादें, ताज़ा करने ।
उन दिनों की बात;
अपनों के साथ;
खिलखिलाना;
छीना–झपटी कर;
दूसरों का हिस्सा;
खा जाना;
लड़ना, झगड़ना;
रूठना–मनना;
ना जाने, कितनी बातें;
स्मृति पटल पर;
झट से, उभरने लगी;
कुछ पन्ने पलटे तो;
फ़िर, हिम्मत न हुई;
आगे बढ़ने की;
ओह !
वो भी, क्या दिन थे …


गंगेश मिश्र अनुरागी, कपिलवस्तु, नेपाल