• २०८१ असोज २४ बिहीबार

जब देश रोता है

बसन्त चौधरी

बसन्त चौधरी

सिर्फ अपनी स्वार्थ–पूर्ति की खातिर
निर्ममतापूर्वक ये कथित नायक
दिन–दहाडे दल के दलदल में
देश को निचोड–खसोटकर फेंक रहा है,
यह वक्त संगीन तो है ही ।

मगर विश्वास है कि
जब तक एक भी देशभक्त जिंदा रहेगा
नहीं कुहकेगी छाती विलुप्त नहीं होगी ।
खो नहीं जाएगा पूर्व का क्षितिज
उगती रहेगी संभावनाओं की सुबह !

निमेष भर के लिए की सही
एक पवित्र काल काफी है
महाप्रलय को रोकने के लिए
आत्मविश्वास से भरा
एक ईमान्दार कंधा ही काफी है
पूरे देश का बोझ ढोने के लिए ।

हिमालय के ह्दय में भी है बडवाग्नि !
वीर नेपाली उठेगा और चढेगा उसी बडवाग्नि की काठी पर
मुझे पूर्ण विश्वास है
अपने इस सुन्दर सपने पर !

साभार: चाहतों के साये मेंं


[email protected]
(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)