मुक्तक

ऐ ! जगवालों ये दर्द हमारा,
रो रो कर तुम्हे सुनाती हूँ ।
गर्भस्थ शिशू कन्या निरीह,
संसार त्याग मैं जाती हूँ ।
ऐ ! मानव तू तो दानव है
केवल अधिकार तुम्हारा क्या ?
तूने क्यूँ मुझको मार दिया,
था मैंने तेरा बिगाड़ा क्या ?
गर्भस्थ शिशू की हत्या कर
तूने कितने अपराध किये ।
मैं दुनिया को ना देख सकी,
पापी तूने क्यों घात किये ।
मैं वापस प्रभु के पास गई,
उनके चरणों मे शरण लिया ।
फिर परमेश्वर से भेंट हुई,
मेरी पीड़ा का श्रवण किया ।
मैं दुनिया मे जा तक ना पायी,
ऐसा मुझ पर था वार किया ।
बहु असह वेदना दर्द दिया
आने से पहले मार् दिया ।
इंसा कहलाते सर्व श्रेष्ठ,
पर कैसा ढोंग रचाते हैं ।
इतनी नफरत धोखा तो,
वो पशु भी नही रचाते हैं ।
ये कैसी तेरी दुनिया है,
अब प्रभु से मुझको कहना है ।
ना जनम मिले अब धरती पर,
उस जग मे अब ना रहना है ।
ऐ जग वालों ये दर्द हमारा,
रो रोकर तुम्हें सुनाती हूँ ।
गर्भस्थ शिशू कन्या निरीह,
संसार त्याग अब जाती हूँ ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला
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