बाबू जी !
मैं अब रूठता नहीं हूँ
क्योंकि अब मैं बडा हो गया हूँ
बिल्कुल आपकी तरह
कोशिश करता हूँ बनूँ आप जैसा
बाबू जी !
मुझे मेघा में दोष नहीं दिखते
वैसे ही जैसे आपको
नहीं दिखते थे मुझ में
आप मुझे
सपने में भी नहीं डाँटते,
बस समझाते हैं पहले ही की तरह ।
बाबू जी !
मेरे कदम होने लगे हैं शिथिल
इसलिए कर नहीं पाता शरारतें
जैसी आपके सामने करता था
बाबू जी !
लेकिन मैं थका नहीं हूँ,
इस दुविधा भरे संसार से
अपने हालात को ढोते हुए,
जुझते हुए इन कठिनाइयों से
क्षण भर के सुकून के लिए
प्रतीक्षरता हूँ आपकी छत्रछाया का
बाबू जी !
आज भी चाहता हूँ आपसे
वही हौसला, वही सम्बल
जिसने हर कदम पर
साथ दिया है मेरा
आप यहीं तो हैं कहीं
हर पल मेरे आसपास
क्योंकि मैं महसूसता हूँ
बस चेतना में सुन नहीं पाता
आपको, हाँ बाबू जी
आप हैं मुझमें क्योंकि
आपकी ही प्रतिच्छाया हूँ मैं।
साभार: अनेक पल और मैं (कविता संग्रह)
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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)