• २०८१ मंसिर १७ सोमबार

प्रेम की छांव में

बसन्त चौधरी

बसन्त चौधरी

तुम्हें देखने के लिए
ऐसा नहीं कि तुम्हें देखना होगा ।
जिंदगी जीने के लिए
ऐसा भी नहीं कि साँसें लेनी होंगी ।
प्रेम करने के लिए
यह भी नहीं कि
तुम्हें बाँहों में भरना होगा !

प्रेम की उदारता के सामने
आकाश को झुकते हुए देखा है
वहीं पर मेरे स्वर्ग का दरवाजा खुलता है
जहाँ मैं खडा होता हूँ ।
तभी तो
मैं प्रेम में नहीं
कविता में
प्रेम लिखता हूँ !

साभार: चाहतों के साये मेंं


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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)