मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी
न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी
मनोहर झरना ।
कठिन गिरि कहाँ विदारित करना
बात कुछ छिपी हुई हैं गहरी
मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी
कल्पना तीत काल की घटना
हृदयको लगी अचानक रटना
देख कर झरना ।
प्रथम वर्षा से इसका भरना
स्मरण हो रहा शैलका कटना
कल्पना तीत काल की घटना
कर गई प्लावित तनमन सारा
एक दिन तब अपांगकी धारा
हृदय से झरना-
बह चला, जैसेदृगजल ढरना ।
प्रणयवन्या ने किया पसारा
कर गई प्लावित तन मन सारा
प्रेम की पवित्र पर छाई में
लाल साह रित विट पझाँई में
बह चला झरना ।
तापमय जीवन शीतल करना
सत्य यह तेरी सुघराई में
प्रेम की पवित्र परछाई में ॥
जयशंकरप्रसाद