मुक्तक

जिंदगी बिखरी पड़ी है तंगगलियों में यहाँ
झूमते हैं लोग कुछ तो रंगरलियों में यहाँ ।
आदमीकी जिंदगानी इक अजब संसार है
जिंदगी यूँ ही बितादी सिर्फ छलियों में यहाँ ।
जब हवशकी आंधियों में डूब जाते लोग हैं
कुछ दरिदें खेलते हैं कच्ची कलियों से यहाँ ।
ख्वाहिशें जगती हजारों पर कभी मिलती नहीं
जिंदगी सारी बितादी चंद डालियों में यहाँ ।
तितलियाँ तो घूमती हैं गुलगुलिस्ताँ भर
आदमी की जिंदगी पर गंदी गलियों में यहाँ ।
डॉ कृष्णजंग राणा (काठमान्डू, नेपाल)