• २०८२ असार ३१ मङ्गलबार

हसरतें

बसन्त चौधरी

बसन्त चौधरी

कितने प्यारे
कितने सुन्दर, मनभावन
वो रिश्ते
जो सायास नहीं बनाये थे,
अनायास ही बन गये थे
देव कृपा से
कुछ पावन रिश्ते ।

कुछ ख्वाहिशें
पल रही थीं दिल में
वो भी रह गयी थीं अधूरी
किन्तु,
उन्हें सँभाल कर रखा मैंने

जबकि,
उन टुटे रिश्तों,
अधूरी ख्वाहिशों को
जोडे रखने की सभी सम्भावनाएँ
हो चुकी हैं क्षीण

अब चाहत है
उन सबको भूल जाने की,
नहीं ! भूलने की नहीं
उन्हें दफनाने की
दिल के एक कोने में
जहाँ सभी सुरक्षित रहें
मेरे संघर्ष, मेरे रिश्ते, मेरी ख्वाहिशें
और तमाम हसरतें ।

साभार: अनेक पल और मैं


[email protected]
(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)