कुछ उठाते कुछ गिराते
कुछ चुभते कुछ सहलाते ।
कितनी तरहके होते हैं ये
यात्रा पथके पत्थर हमारे ।।
कुछ प्रेरणा देते हैं ऊँचा उठने की
कुछ डराते हैं अनन्त गहराइयों से ।
कुछ कहते हैं तराश लो ख़ुदको ।
दुनियामें महान बनने के लिए ।।
कुछ पड़े रहते हैं अविचल स्थिर
नदीकी अनन्त धाराओं में ।
जलके असीमित वेगसे लड़ते
हौसलो की नई परिभाषा गढ़ते ।।
कितना कुछ कह देते हैं ये
निर्जीव होते हुए भी मूक भाषामें ।
हरपल नए सन्देश प्रसारित करते ।
हमेशा मिलते हैं पथके पत्थर ।।
साभारः साहित्यरचना ई-पत्रिका
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश), भारत