• २०८१ असोज २४ बिहीबार

पथके पत्थर

नृपेंद्र शर्मा 'सागर'

नृपेंद्र शर्मा 'सागर'

कुछ उठाते कुछ गिराते
कुछ चुभते कुछ सहलाते ।
कितनी तरहके होते हैं ये
यात्रा पथके पत्थर हमारे ।।

कुछ प्रेरणा देते हैं ऊँचा उठने की
कुछ डराते हैं अनन्त गहराइयों से ।
कुछ कहते हैं तराश लो ख़ुदको ।
दुनियामें महान बनने के लिए ।।

कुछ पड़े रहते हैं अविचल स्थिर
नदीकी अनन्त धाराओं में ।
जलके असीमित वेगसे लड़ते
हौसलो की नई परिभाषा गढ़ते ।।

कितना कुछ कह देते हैं ये
निर्जीव होते हुए भी मूक भाषामें ।
हरपल नए सन्देश प्रसारित करते ।
हमेशा मिलते हैं पथके पत्थर ।।

साभारः साहित्यरचना ई-पत्रिका


मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश), भारत